भूमिका
- भगवान शनि देव नवग्रहों में से एक हैं और हिंदू मान्यता में न्याय, कर्म और अनुशासन के प्रतीक माने जाते हैं।
- वे सूर्य देव और छाया देवी के पुत्र हैं तथा उनका वाहन कौआ या गिद्ध है, जो उनके न्यायप्रिय और दूरदर्शी स्वरूप को दर्शाता है।
- शनि देव सद्कर्मों का फल देते हैं और दुष्कर्मों का दंड, इसी कारण उन्हें एक शक्तिशाली और कभी-कभी भयभीत करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है।
- शनि आरती विशेष रूप से शनि दोष, साढ़े साती, ढैय्या जैसे ग्रह दोषों को शांत करने हेतु की जाती है तथा स्थिरता, न्याय और आत्मिक संतुलन की प्राप्ति के लिए गाई जाती है।
- यह आरती विशेष रूप से शनिवार को, शनि जयंती पर, और शनि ग्रह संबंधी पूजा/व्रत के समय की जाती है, जिससे जीवन में राहत और उन्नति मिलती है।
श्री शनिदेव आरती
जय जय श्री शनिदेवभक्तन हितकारी। सूरज के पुत्र प्रभुछाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
श्याम अंग वक्र-दृष्टिचतुर्भुजा धारी। निलाम्बर धार नाथगज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
क्रीट मुकुट शीश सहजदिपत है लिलारी। मुक्तन की माल गलेशोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
मोदक और मिष्ठान चढ़े,चढ़ती पान सुपारी। लोहा, तिल, तेल, उड़दमहिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
देव दनुज ऋषि मुनिसुमिरत नर नारी। विश्वनाथ धरत ध्यान हमहैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
शनि देव – मुख्य तथ्य
- शनि देव – ब्रह्मांड के कर्मों के न्यायाधीश
शनि देव, शनि ग्रह के अधिपति हैं और वैदिक ज्योतिष में उन्हें न्याय एवं अनुशासन के देवता माना गया है। वे प्रत्येक जीव के कर्मों का फल देते हैं — अच्छे कर्मों को पुरस्कृत करते हैं और बुरे कर्मों को दंडित। - सूर्य देव के पुत्र एवं यमराज के भाई
शनि देव, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। उनके भाई यमराज, मृत्यु के देवता हैं। दोनों ही धर्म और न्याय के दायित्व को निभाते हैं। - सत्य, परीक्षा और परिवर्तन के प्रतीक
शनि की दशा, साढ़ेसाती या शनि महादशा जीवन में कड़ी परीक्षा लाती है, लेकिन यह अहंकार का नाश, धैर्य की परीक्षा, और कर्म सुधार का अवसर भी देती है। - प्रसिद्ध मंदिर एवं पूजा विधियाँ
भारत में प्रमुख शनि मंदिरों में शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र) और कोकिलावन धाम (उत्तर प्रदेश) प्रसिद्ध हैं। शनिवार को काले तिल, सरसों का तेल, और दीपक अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। - भक्ति से मिलता है सुरक्षा और कर्मों से मुक्ति
शनि देव का वाहन कौआ या गिद्ध है। वे मौन रहकर सभी पर दृष्टि रखते हैं। सच्चे मन से पूजा करने से कष्टों में कमी, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा, और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
शनि आरती पढ़ने के विशेष अवसर और समय
- शनिवार (Shanivar) – साप्ताहिक पूजा
श्रेष्ठ समय:
– प्रातःकाल: 6:00 AM से 8:00 AM (स्नान और तिल-तेल अर्पण के बाद)
– संध्याकाल: 5:30 PM से 7:30 PM (दीपदान और संध्या वंदन के समय)
पूजन विधि: पीपल के वृक्ष के नीचे या शनि मंदिर में सरसों का तेल, काले तिल, और दीपक चढ़ाना शुभ माना जाता है। - शनि जयंती (ज्येष्ठ अमावस्या)
यह दिन शनि देव के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
श्रेष्ठ समय:
– सूर्योदय के समय पूजा
– शाम को अमावस्या के दीपदान के समय: 5:30 PM – 7:30 PM - शनि साढ़ेसाती या शनि महादशा (ज्योतिषीय कठिन काल)
इस अवधि में प्रत्येक शनिवार एवं अमावस्या को शनि आरती का पाठ करना लाभकारी होता है।
अनुशंसित समय:
– प्रातःकाल: स्नान के बाद, तेल तिलक करके - कठिन समय में (जैसे नौकरी चली जाना, मुकदमे, रोग आदि)
जब जीवन में कर्मजनित बाधाएँ आ रही हों, शनि की आराधना संबल देती है।
श्रेष्ठ समय:
– सूर्योदय के बाद प्रातःकाल
– सूर्यास्त के बाद संध्याकाल - अमावस्या या ग्रहण के दिन
अमावस्या अथवा सूर्य/चंद्र ग्रहण के दिन शनि आरती का पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।
श्रेष्ठ समय:
– अमावस्या की संध्या के एक घंटे पहले और दौरान
– ग्रहण काल के दौरान: भोजन व सांसारिक कार्यों से दूरी बनाकर केवल मंत्र, ध्यान और आरती करें। इन विशेष समयों पर शनि देव की आरती पढ़ने से कर्मों की शुद्धि, बाधाओं से रक्षा, और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
भारत के प्रमुख 5 शनि देव मंदिर
- शनि धाम मंदिर – दिल्ली
स्थान: छतरपुर रोड, दिल्ली
विशेषता: यहां शनि देव की दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर हजारों भक्तों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल है, विशेषकर शनिवार के दिन भारी भीड़ होती है। - शनि देव मंदिर – खरसाली, यमुनोत्री (उत्तराखंड)
स्थान: यमुनोत्री धाम के पास, खरसाली गांव
महत्त्व: यह प्राचीन मंदिर सर्दियों में शनि देव का निवास स्थल माना जाता है। यमुनोत्री धाम यात्रा में इसका आध्यात्मिक और पारंपरिक महत्व है। - शनि मंदिर – शिंगणापुर (महाराष्ट्र, उत्तर भारत से मार्ग)
स्थान: अहमदनगर ज़िला, महाराष्ट्र
विशेषता: भले ही यह मंदिर महाराष्ट्र में है, लेकिन उत्तर भारत के भक्त बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। यह मंदिर बिना दरवाज़ों वाले गांव के लिए प्रसिद्ध है और शनि देव की प्रभावशाली उपस्थिति के कारण भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी है। - शनि मंदिर – गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)
स्थान: गाजियाबाद शहर
महत्त्व: उत्तर भारत में स्थित यह मंदिर क्षेत्रीय भक्तों के लिए अत्यंत लोकप्रिय है। प्रत्येक शनिवार यहाँ हजारों श्रद्धालु सरसों का तेल, काले तिल और दीपक चढ़ाते हैं। - शनि देव मंदिर – हरिद्वार (उत्तराखंड)
स्थान: हर की पौड़ी के पास, हरिद्वार
विशेषता: यह मंदिर हरिद्वार की तीर्थ यात्रा परिक्रमा में शामिल है। कुंभ मेले के समय में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए यहाँ पहुँचते हैं। यह शनि पूजा और कर्मशुद्धि का महत्वपूर्ण केंद्र है।