परिचय
- दिव्य भक्ति का स्वरूप
अम्बे माता की आरती माँ दुर्गा के उग्र व करुणामयी रूप माँ अम्बा को समर्पित एक पवित्र स्तुति है, जो शक्ति व सुरक्षा का प्रतीक है। - पूजा का आध्यात्मिक अनुष्ठान
यह आरती रोज़ाना की पूजा में गाई जाती है और नवरात्रि व दुर्गा पूजा के दौरान इसका विशेष महत्व होता है। - साहस और सुरक्षा की प्राप्ति
भक्त यह आरती माँ से साहस, निर्भयता, सुरक्षा और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गाते हैं। - शक्ति का प्रतीक
यह आरती माँ दुर्गा की शक्ति, धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के भाव को दर्शाती है। - पारंपरिक संगीत और भक्ति का भाव
ढोलक, मंजीरा और घंटी के साथ गाई जाने वाली यह आरती वातावरण को भक्ति और ऊर्जा से भर देती है। - माँ से आत्मिक जुड़ाव
इस आरती के माध्यम से भक्त और माँ अम्बा के बीच आत्मिक संबंध और अधिक गहरा होता है।
अम्बे जी की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ब्रहमाणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
अम्बे माता जी – प्रमुख तथ्य
- नाम और अर्थ "अम्बे" या "अम्बा" का अर्थ है माँ। ये जगदम्बा और आदिशक्ति का रूप हैं — जो सृष्टि की मूल जननी और संपूर्ण ब्रह्मांड की माता मानी जाती हैं।
- शक्ति का प्रतीक माँ अम्बे शक्ति (ऊर्जा) का साक्षात स्वरूप हैं, जो सृजन, पालन और संहार की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह हर जीव में जीवन शक्ति के रूप में व्याप्त हैं।
- रूप और अस्त्र-शस्त्र माँ को सिंह या बाघ पर सवार दिखाया जाता है, जिनके अनेक हाथों में त्रिशूल, तलवार, शंख, कमल आदि होते हैं, जो धर्म, शक्ति, शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक हैं।
- उत्सवों में विशेष पूजा नवरात्रि, दुर्गा अष्टमी, चैत्र नवरात्र और दुर्गा पूजा के समय माँ अम्बे की विशेष भक्ति होती है। ये पर्व असुरों के नाश और धर्म की स्थापना का प्रतीक हैं।
- सर्वत्र माता और रक्षक माँ अम्बे को सभी जीवों की माता माना जाता है। भक्त “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” जैसे मंत्रों और आरती “जय अम्बे गौरी” के माध्यम से उनकी कृपा और आत्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं।
अम्बे माता जी की आरती कब करें
- नवरात्रि के दौरान (सभी 9 रात्रियाँ) शारदीय व चैत्र नवरात्रि में
समय: प्रातःकाल: 5:00 बजे – 6:30 बजे (ब्रह्म मुहूर्त)
संध्या: 6:00 बजे – 7:30 बजे
रोज़ आरती करने से माँ की शक्ति और कृपा प्राप्त होती है। - हर मंगलवार और शुक्रवार
समय: -सुबह की आरती: 7:00 बजे – 8:00 बजे
शाम की आरती: 6:30 बजे – 7:30 बजे
इन दिनों आरती करने से शांति, सुरक्षा और सकारात्मकता मिलती है। - अष्टमी व नवमी (दुर्गा अष्टमी / महा नवमी)
नवरात्रि की 8वीं और 9वीं तिथि
समय: विशेष पूजा आरती: 6:00 बजे – 8:00 बजे
कन्या पूजन पूर्व: दोपहर 12:00 बजे तक
इन दिनों माँ की असुर विनाश की लीला का पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है। - प्रतिदिन की प्रातः व सायंकालीन पूजा में
रोज़ाना पूजा के समय
समय: प्रातःकाल: 6:00 बजे – 7:00 बजे
सायंकाल: 6:00 बजे – 7:00 बजे
रोज़ की आरती करने से नकारात्मकता दूर होती है और मन में शक्ति बनी रहती है। - नए कार्य या यात्रा शुरू करने से पहले
नया व्यवसाय, परीक्षा, गृह प्रवेश आदि के समय
समय: सुबह 6:00 बजे से 9:00 बजे तक
आरती करने से कार्य में सफलता, माँ की रक्षा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
भारत के 5 प्रसिद्ध अम्बे माता मंदिर
- अम्बाजी मंदिर – गुजरात
स्थान: बनासकांठा ज़िला, गुजरात
यह माँ अम्बा का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि श्री यंत्र की पूजा होती है। यह पश्चिम भारत का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। - वैष्णो देवी मंदिर – जम्मू और कश्मीर
स्थान: त्रिकुटा पहाड़ियाँ, कटरा
माँ अम्बे के रूप वैष्णो देवी को समर्पित यह गुफा मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यहाँ हर साल करोड़ों श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं। - मानसा देवी मंदिर – हरिद्वार, उत्तराखंड
स्थान: बिल्व पर्वत, हरिद्वार
यह शक्तिशाली सिद्धपीठ माँ मानसा देवी को समर्पित है, जिन्हें मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है। यह उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से है। - कामाख्या देवी मंदिर – असम
स्थान: नीलाचल पर्वत, गुवाहाटी
यह भारत के प्राचीनतम और रहस्यमयी शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ कामाख्या देवी की पूजा होती है, जो उर्वरता और स्त्री शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं। यह स्थान तांत्रिकों और साधकों के लिए भी विशेष महत्व रखता है।
दुर्गा मंदिर (काशी) – वाराणसी, उत्तर प्रदेश
- स्थान: दुर्गा कुंड, वाराणसी
यह मंदिर माँ दुर्गा के उग्र रूप को समर्पित है। इसे मंकी टेंपल भी कहा जाता है। यहाँ की मूर्ति को स्वयंभू (स्वतः प्रकट) माना जाता है, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पूजनीय है।