बद्रीनाथ आरती का परिचय
- भगवान बद्री विशाल को समर्पित भक्ति-पूर्ण अर्पण, जो बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु के रूप में पूजित होते हैं।
- मंदिर खुला रहने के दौरान (अप्रैल से नवंबर), प्रतिदिन प्रातः और संध्या समय यह आरती विधिवत रूप से की जाती है।
- पवित्र हिमालय की गोद में गाई जाने वाली यह आरती वातावरण को दिव्यता और श्रद्धा से भर देती है।
- चार धाम यात्रा का अभिन्न अंग होने के कारण यह आरती तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत महत्व रखती है।
- यह आरती शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम मानी जाती है।
बद्रीनाथ जी की आरती
जय जय श्री बदरीनाथ जयति योग ध्यानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ जयति योग ध्यानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ...
निर्गुण सगुण स्वरूप, मेधवर्ण अति अनूप।
सेवत चरण सुरभूप, ज्ञानी विज्ञानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ...
झलकत है शीश छत्र, छवि अनूप अति विचित्र।
बरनत पावन चरित्र, सकुचत बरबानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ...
तिलक भाल अति विशाल, गल में मणि मुक्त-माल।
प्रनतपाल अति दयाल, सेवक सुखदानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ...
कानन कुण्डल ललाम, मूरति सुखमा की धाम।
सुमिरत हों सिद्धि काम, कहत गुण बखानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ...
गावत गुण शम्भु, शेष, इन्द्र, चन्द्र अरु दिनेश।
विनवत श्यामा हमेश, जोरी जुगल पानी॥
जय जय श्री बदरीनाथ...
बद्रीनाथ आरती – प्रमुख तथ्य
- यह आरती भगवान विष्णु के बद्री विशाल (बद्रीनाथ जी) स्वरूप को समर्पित है।
- प्रतिदिन उत्तराखंड स्थित पवित्र बद्रीनाथ मंदिर में गाई जाती है, जो चारधामों में से एक है।
- मंदिर खुला रहने के दौरान (अप्रैल से नवंबर), सुबह और शाम की पूजा में इसका आयोजन होता है।
- यह आरती ईश्वरीय कृपा, आंतरिक शांति और मोक्ष की राह में मार्गदर्शन देने वाली मानी जाती है।
- पारंपरिक भक्ति भाव से गाई जाती है, जिसमें घंटे, शंख और ढोल आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है।
बद्रीनाथ जी की आरती कब करें
- सुबह की मंगला आरती और शाम की संध्या आरती के समय इसका पाठ करें, जैसा कि बद्रीनाथ मंदिर में होता है। दिन की शुरुआत और समापन के लिए यह उत्तम माना जाता है।
- अप्रैल से नवंबर तक के चारधाम यात्रा सीज़न के दौरान, विशेषकर बद्रीनाथ धाम यात्रा करते समय यह आरती अत्यंत फलदायक मानी जाती है।
- एकादशी, वैकुंठ एकादशी और विष्णु जयंती जैसे विष्णु से संबंधित पावन अवसरों पर आरती का पाठ करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
- भगवान विष्णु की पूजा या सत्यनारायण कथा के बाद आरती गाना एक शुभ और संपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान बनाता है।
- घर या मंदिर में इसे नियमित पूजा में शामिल किया जा सकता है, विशेष रूप से गुरुवार और रविवार को, जो भगवान विष्णु के लिए विशेष माने जाते हैं।
भगवान बद्रीनाथ को समर्पित 5 प्रमुख मंदिर
- बद्रीनाथ मंदिर – उत्तराखंड
स्थान: चमोली ज़िला, उत्तराखंड
महत्व: बद्रीनाथ जी का मूल और सबसे पवित्र मंदिर, जो चारधाम यात्रा और 108 दिव्य देशम में शामिल है।खुला समय: अप्रैल/मई से नवंबर तक; शीतकाल में बर्फ़बारी के कारण बंद रहता है। - आदि बद्री – उत्तराखंड
स्थान: कर्णप्रयाग के पास, चमोली ज़िला
महत्व: 16 प्राचीन मंदिरों का समूह, जिन्हें आदि शंकराचार्य द्वारा पंच बद्री में शामिल किया गया था।
मुख्य देवता: भगवान विष्णु बद्री स्वरूप में पूजित हैं। - भविष्य बद्री – सुभाईन गांव, उत्तराखंड
स्थान: जोशीमठ के पास
महत्व: पंच बद्री में से एक मंदिर; मान्यता है कि जब मुख्य बद्रीनाथ मंदिर पहुँचना असंभव हो जाएगा, तब यह भविष्य में प्रमुख बद्री मंदिर बनेगा। - योग ध्यान बद्री – पांडुकेश्वर, उत्तराखंड
स्थान: जोशीमठ और बद्रीनाथ के बीच
महत्व: राजा पांडु द्वारा तपस्या और विष्णु मूर्ति की स्थापना से जुड़ा स्थान; ध्यान और शांति के लिए विशेष स्थल। - वृद्ध बद्री – अणिमठ गांव, उत्तराखंड
स्थान: जोशीमठ के पास
महत्व: मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां वृद्ध रूप में प्रकट हुए थे और यहीं आदि शंकराचार्य को बद्रीनाथ की मूर्ति प्राप्त हुई थी।