Shree suktam

श्रेणी:Goddess Stotra
उपश्रेणी:Top Hindu Goddesses and Their Powerful Stotras – Complete Guide
 Shree suktam
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Introduction

  • Vedic Hymn of Prosperity: Shree Suktam is a sacred hymn from the Rigveda dedicated to Goddess Lakshmi, the deity of wealth and fortune.
  • Divine Invocation: It praises the qualities of Sri Lakshmi and invokes her presence for abundance, purity, and spiritual grace.
  • Multiple Recitations: Often chanted during Diwali, Fridays, Lakshmi Puja, and daily rituals for blessings and success.
  • Symbol of Prosperity: Each verse symbolizes purity, gold, grains, light, and all auspicious forms of wealth.
  • Eternal Relevance: The mantras are considered spiritually potent and are used in rituals, homas, and temple ceremonies.


॥  श्री सूक्तम् ।।

हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

अर्थ:
हे अग्निदेव! स्वर्णवर्णा, मृग सदृश कोमल, सुवर्ण-रजत आभूषणों से युक्त, चंद्र के समान प्रकाशमान लक्ष्मी को मेरे पास लाएँ।
Hariḥ Om hiraṇyavarṇāṁ hariṇīṁ suvarṇarajatasrajām।
candrāṁ hiraṇmayīṁ lakṣmīṁ jātavedo ma āvaha॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥

अर्थ:
हे जातवेदो! वह लक्ष्मी मेरे पास आए, जिससे मुझे स्वर्ण, गौएँ, घोड़े और श्रेष्ठ पुरुष प्राप्त हों।
Tāṁ ma āvaha jātavedo lakṣmīmanapagāminīm।
yasyāṁ hiraṇyaṁ vindeyaṁ gāmaśvaṁ puruṣānaham॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥

अर्थ:
जो देवी अश्वों के रथ में अग्रभाग में स्थित, हाथी के निनाद से जाग्रत होने वाली हैं, उन्हें बुलाता हूँ – वह लक्ष्मी सदा मेरी हो जाएँ।
Aśvapūrvāṁ rathamadhyāṁ hastinādaprabodhinīm।
śriyaṁ devīmupahvaye śrīrmā devī juṣatām॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥

अर्थ:
जो देवी स्वर्ण प्राचीरों से घिरी हुईं, कोमल, उज्ज्वल, संतुष्ट तथा दूसरों को संतोष प्रदान करने वाली हैं, पद्म पर स्थित एवं पद्म के समान वर्ण वाली हैं – उनका मैं आवाहन करता हूँ।
Kāṁ sosmitāṁ hiraṇyaprākārāmārdhrāṁ jvalantīṁ tṛptāṁ tarpayantīm।
padme sthitāṁ padmavarṇāṁ tāmihopahvaye śriyam॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥

अर्थ:
जो लक्ष्मी चन्द्रवत् शोभायुक्त, यशस्विनी, देवताओं को प्रिय, उदार हैं – उनका मैं आश्रय लेता हूँ। मेरी दरिद्रता दूर हो जाए, मैं आपको वरण करता हूँ।

 Candrāṁ prabhāsāṁ yaśasā jvalantīṁ śriyaṁ loke devajuṣṭāmudārām।
tāṁ padminīmīṁ śaraṇamahaṁ prapadye'lakṣmīrme naśyatāṁ tvāṁ vṛṇe॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥

अर्थ:
हे आदित्यवर्णा लक्ष्मी! आप तप से उत्पन्न हुई हैं, आपके लिए बिल्ववृक्ष वनस्पति के रूप में उत्पन्न हुआ। उसके फल मेरे तप से परिपक्व हों और मेरी दरिद्रता तथा मायिक विघ्न दूर हों।
Ādityavarṇe tapaso'dhijāto vanaspatistava vṛkṣo'tha bilvaḥ।
tasya phalāni tapasānudantu māyāntarāyāśca bāhyā alakṣmīḥ॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥

अर्थ:
देवताओं के मित्र (कुबेर) तथा कीर्ति मणिरत्नों के साथ मेरे पास आएँ। मैं इस राष्ट्र में प्रकट हुआ हूँ – मुझे कीर्ति और समृद्धि प्राप्त हो।

 Upaitu māṁ devasakhaḥ kīrtiśca maṇinā saha।
prādurbhūto'smi rāṣṭre'smin kīrtimṛddhiṁ dadātu me॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्॥

अर्थ:
मैं क्षुधा, प्यास, मलयुक्त, ज्येष्ठा तथा दरिद्रता को नष्ट करता हूँ। अभाव, असमृद्धि – सब कुछ मेरे घर से दूर हो जाए।


Kṣutpipāsāmalāṁ jyeṣṭhāmalakṣmīṁ nāśayāmyaham।
abhūtimasamṛddhiṁ ca sarvāṁ nirṇuda me gṛhāt॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥

अर्थ:
जो लक्ष्मी सुगंधित, दुर्लभ, नित्य पोषण देने वाली, गोबर और भूमि से संबंध रखने वाली, समस्त जीवों की ईश्वरी हैं – मैं उनका आवाहन करता हूँ।
Gandhadvārāṁ durādharṣāṁ nityapuṣṭāṁ karīṣiṇīm।
īśvarīṁ sarvabhūtānāṁ tāmihopahvaye śriyam॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥

अर्थ:
मैं अपने मन की इच्छा, संकल्प, वाणी का सत्य अनुभव करूँ। पशु, अन्न, यश एवं लक्ष्मी मुझमें स्थिर हों।

 Manasaḥ kāmamākūtiṁ vācaḥ satyamaśīmahi।
paśūnāṁ rūpamannasya mayi śrīḥ śrayatāṁ yaśaḥ॥

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥

अर्थ:
हे कर्दम ऋषि! जिनसे प्रजा उत्पन्न हुई – तुम मुझमें निवास करो और मेरे कुल में लक्ष्मी को वास कराओ जो पद्ममालिनि हैं।

 Kardamena prajābhūtā mayi sambhava kardama।
śriyaṁ vāsaya me kule mātaraṁ padmamālinīm॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥

अर्थ:
हे जल! तुम मेरे घर में स्निग्धता उत्पन्न करो। वह लक्ष्मी देवी, जो चिकनी (मुलायम, समृद्धि दायिनी) हैं, मेरे कुल में वास करें।

 Āpaḥ sṛjantu snigdhāni ciklīta vasa me gṛhe।
ni ca devīṁ mātaraṁ śriyaṁ vāsaya me kule॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

अर्थ:
हे जातवेदो! लक्ष्मी देवी को मेरे पास लाओ – जो कोमल, पुष्करिणी, पुष्टिकारिणी, पिङ्गला वर्ण की, पद्ममालिनी, चन्द्रवर्णा और स्वर्णमयी हैं।

 Ārdhrāṁ puṣkariṇīṁ puṣṭiṁ piṅgalāṁ padmamālinīm।
candrāṁ hiraṇmayīṁ lakṣmīṁ jātavedo ma āvaha॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

अर्थ:
हे जातवेदो! जो लक्ष्मी कोमल, रमणी, स्वर्णवर्णा, सुवर्णमालाधारी, सूर्यवर्णा और हिरण्मयी हैं – उन्हें मेरे पास लाओ।

 Ārdhrāṁ yaḥ kariṇīṁ yaṣṭiṁ suvarṇāṁ hemamālinīm।
sūryāṁ hiraṇmayīṁ lakṣmīṁ jātavedo ma āvaha॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥

अर्थ:
हे अग्निदेव! उस लक्ष्मी को मेरे पास लाओ, जिससे मुझे अपार स्वर्ण, गायें, सेवक, घोड़े और उत्तम पुरुष प्राप्त हों।
Tāṁ ma āvaha jātavedo lakṣmīmanapagāminīm।
yasyāṁ hiraṇyaṁ prabhūtaṁ gāvo dāsyo'śvān vindeyaṁ puruṣānaham॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्॥

अर्थ:
जो मनुष्य पवित्र होकर प्रतिदिन घृत की आहुति देता है और इस श्री सूक्त के पंद्रह मंत्रों का जाप करता है – उसे श्री (लक्ष्मी) की प्राप्ति अवश्य होती है।
Yaḥ śuciḥ prayato bhūtvā juhuyādājyamanvaham।
sūktaṁ pañcadaśarcaṁ ca śrīkāmaḥ satataṁ japet॥

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम्॥

भावार्थ:
हे पद्ममुखी, पद्मनाभ, पद्मनेत्रों वाली, कमल से उत्पन्न देवी! हे पद्माक्षी! कृपया मुझे अपना भक्त बनाओ जिससे मुझे सुख प्राप्त हो।
Padmānane padma ūrū padmākṣī padmasambhave।
tvaṁ māṁ bhajasva padmākṣī yena saukhyaṁ labhāmyaham॥

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥

भावार्थ:
हे देवी! जो घोड़े, गायें, धन प्रदान करती हैं – कृपा करके मुझे धन दें और मेरे सभी कामनाओं की पूर्ति करें।
Aśvadāyi godāyi dhanadāyi mahādhane।
dhanaṁ me juṣatāṁ devi sarvakāmāṁśca dehi me॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम्॥

भावार्थ:
हे देवी! आप संतान की माता हैं, मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी, घोड़े, गायें, रथ दें और मुझे दीर्घायु बनाएं।

 Putrapautra dhanaṁ dhānyaṁ hastyaśvādigave ratham।
prajānāṁ bhavasi mātā āyuṣmantaṁ karotu mām॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते॥

भावार्थ:
धन अग्निदेव का है, वायु का है, सूर्य का है, वसुओं का है, इन्द्र, बृहस्पति और वरुण – सभी देवता धन को प्राप्त करते हैं।

 Dhanamagnirdhanaṁ vāyurdhanaṁ sūryo dhanaṁ vasuḥ।
dhanamindro bṛhaspatirvaruṇaṁ dhanamaśnute॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥

भावार्थ:
वैनतेय (गरुड़) सोम रस पिएं, वृत्रहंता (इन्द्र) भी पिएं – और जो सोम धन का स्वामी है, वह मुझे सोम (धन) प्रदान करे।
Vainateya somaṁ piba somaṁ pibatu vṛtrahā।
somaṁ dhanasya somino mahyaṁ dadātu sominaḥ॥

न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा॥

 है, भावार्थ:
जो व्यक्ति पुण्यात्मा और श्रीसूक्त का जाप करता है, उसमें न क्रोध होतान ईर्ष्या, न लोभ, न ही अशुभ विचार।
Na krodho na ca mātsarya na lobho nāśubhā matiḥ।
bhavanti kṛtapuṇyānāṁ bhaktānāṁ śrīsūktaṁ japetsadā॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि॥

भावार्थ:
हे रात्रि! आकाश के मेघों से बिजली गिरें, वर्षा हो, समस्त बीज अंकुरित हों और हे ब्रह्मन्! द्वेष रखने वालों का नाश हो।

 Varṣantu te vibhāvari divo abhrasya vidyutaḥ।
rohantu sarvabījānyava brahma dviṣo jahi॥

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥

भावार्थ:
हे पद्मप्रिया, पद्मिनी, पद्महस्ता, कमलालय, कमलनयन! जो विष्णु के मन को प्रिय हैं – अपने चरण कमलों को मुझमें स्थित करें।

 Padmapriye padmini padmahaste padmālaye padmadalāyatākṣi।
viśvapriye viṣṇu mano'nukūle tvatpādapadmaṁ mayi sannidhatsva॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया॥

भावार्थ:
जो देवी पद्मासन पर स्थित, विस्तृत कटिप्रदेश, कमलपत्र जैसी लंबी आंखें, गम्भीर नाभि, स्तनों से झुकी हुईं, शुभ्र वस्त्रधारी हैं...
Yā sā padmāsanasthā vipulakaṭitaṭī padmapatrāyatākṣī।
gambhīrā vartanābhiḥ stanabhara namitā śubhra vastrottarīyā॥

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता॥

भावार्थ:
जो देवी लक्ष्मी दिव्य गजेन्द्रों द्वारा रत्नजड़ित स्वर्णकलशों से स्नान कर रही हैं, पद्महस्ता हैं – वह सदा मेरे घर में वास करें।

 Lakṣmīrdivyairgajendrairmaṇigaṇakhacitaissnāpitā hemakumbhaiḥ।
nityaṁ sā padmahastā mama vasatu gṛhe sarvamāṅgalyayuktā॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम्।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम्॥

भावार्थ:
लक्ष्मी जो क्षीरसागर की पुत्री, श्रीरंगधाम की अधिष्ठात्री, सभी देव स्त्रियों की स्वामिनी और जगत की दीपशिखा हैं...

 Lakṣmīṁ kṣīrasamudra rājatanayāṁ śrīraṅgadhāmeśvarīm।
dāsībhūtasamasta deva vanitāṁ lokaika dīpāṅkurām॥

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम्।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम्॥

भावार्थ:
जिन्हें श्री की कृपादृष्टि से ब्रह्मा, इन्द्र, गंगा आदि ने प्राप्त किया है, जो तीनों लोकों की माता हैं – उन मुकुन्दप्रिया लक्ष्मी को वन्दन करता हूँ।

 Śrīmanandakṣatakṣalabdha vibhava brahmendra gaṅgādharām।
tvāṁ trailokya kuṭumbinīṁ sarasijāṁ vande mukundapriyām॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा॥

भावार्थ:
हे सिद्धलक्ष्मी, मोक्षलक्ष्मी, जयलक्ष्मी, सरस्वती, श्रीलक्ष्मी, वरलक्ष्मी – आप सदा मुझ पर प्रसन्न रहें।
Siddhalakṣmīrmokṣalakṣmīrjayalakṣmīssarasvatī।
śrīlakṣmīrvaralakṣmīśca prasannā mama sarvadā॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम्।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीश्वरीं त्वाम्॥

भावार्थ:
जो देवी वर, अंकुश, पाश और अभय मुद्रा धारण करती हैं, कमल पर विराजमान हैं, करोड़ों सूर्यों जैसी प्रभा वाली हैं, तीन नेत्रों वाली हैं – मैं आद्या जगदीश्वरी का पूजन करता हूँ।
Varāṅkuśau pāśamabhītimudrāṁ karairvahantīṁ kamalāsanasthām।
bālārka koṭi pratibhāṁ triṇetrāṁ bhajehamādyāṁ jagadīśvarīṁ tvām॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

भावार्थ:
हे सर्वमंगलमंगल्ये, कल्याणमयी, शिवस्वरूपा, समस्त अर्थों को सिद्ध करनेवाली, त्र्यम्बका – नारायणी देवी! आपको बारम्बार नमस्कार है।

 Sarvamaṅgalamāṅgalye śive sarvārtha sādhike।
śaraṇye tryambake devi nārāyaṇi namo'stu te॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥

भावार्थ:
हे कमल में निवास करनेवाली, कमलहस्त, उज्ज्वल वस्त्रधारी, सुगंधित मालाओं से विभूषिता, हरिवल्लभा, त्रिभुवन को समृद्ध करनेवाली देवी! मुझ पर कृपा करें।
Sarasijanilaye sarojahaste dhavalatarāṁśuka gandhamālyaśobhe।
bhagavati harivallabhe manojñe tribhuvanabhūtikari prasīda mahyam॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥

भावार्थ:
मैं विष्णु पत्नी, क्षमा देवी, माधवी, माधव की प्रिय, विष्णु की प्रिय सखी, अच्युत की प्रियतमा देवी को नमन करता हूँ।

 Viṣṇupatnīṁ kṣamāṁ devīṁ mādhavīṁ mādhavapriyām।
viṣṇoḥ priyasakhīṁ devīṁ namāmyacyutavallabhām॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥

भावार्थ:
हम महालक्ष्मी को जानें, विष्णुपत्नी का ध्यान करें – वह लक्ष्मी देवी हमें शुभ प्रेरणा दें।

 Mahālakṣmī ca vidmahe viṣṇupatnīṁ ca dhīmahi।
tanno lakṣmīḥ pracodayāt॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः॥

भावार्थ:
पवित्र तेज, आयुष्य, आरोग्य, धन, धान्य, पशु, संतान प्राप्त हो – और सौ वर्षों तक दीर्घजीवन प्राप्त हो।

 Śrīvarcasyamāyuṣyamārogyamāvidhāt pavamānaṁ mahiyate।
dhanaṁ dhānyaṁ paśuṁ bahuputralābhaṁ śatasanvatsaraṁ dīrghamāyuḥ॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥

भावार्थ:
मेरे ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, भूख, अकाल मृत्यु, भय, शोक और मानसिक कष्ट सदा नष्ट हों।

 Ṛṇarogādidāridryapāpakṣudapamṛtyavaḥ।
bhayaśokamanastāpā naśyantu mama sarvadā॥

य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

भावार्थ:
जो इस मन्त्र को जानता है, वह महादेवी और विष्णुपत्नी का ध्यान करे – वह लक्ष्मी हमें प्रेरणा दें। ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

 Ya evaṁ veda om mahādevyai ca vidmahe viṣṇupatnīṁ ca dhīmahi।
tanno lakṣmīḥ pracodayāt om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ॥

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