Aditya Hridaya Stotra – Solar Mantra of Strength and Victory

श्रेणी:Other Vedic Stotra
उपश्रेणी:Vedic stotras are sacred hymns composed in praise of deities, meant to invoke divine blessings, spiritual elevation, and inner peace.
Aditya Hridaya Stotra – Solar Mantra of Strength and Victory
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Introduction 

  • Aditya Hridaya Stotra is a powerful solar hymn from the Yuddha Kanda of the Ramayana, revealed to Lord Rama by Sage Agastya on the battlefield.
  • It praises Surya Dev (the Sun God) as the source of energy, wisdom, health, and cosmic power.
  • Chanting this stotra grants mental clarity, courage, vitality, and protection from enemies or internal weakness.
  • It is especially beneficial for overcoming fatigue, depression, fear, and diseases, and for success in tough situations.
  • Daily recitation during sunrise enhances spiritual radiance, strength, focus, and divine guidance.



।।   आदित्य हृदय स्तोत्र।।

विनियोग -

ॐ अस्य आदित्यहृदय स्तोत्रस्यअगस्त्यऋषिः अनुष्टुप्छन्दः आदित्यहृदयभूतो।भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः॥

 ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥1॥

 Tato yuddha-pariśrāntaṁ samare cintayā sthitam।
Rāvaṇaṁ cāgrato dṛṣṭvā yuddhāya samupasthitam॥

 अर्थ:
उस समय युद्ध से थके हुए श्रीराम को चिन्तामग्न देखकर और रावण को सामने युद्ध के लिए तैयार खड़ा देखकर...

 दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्रामम् अगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥2॥

 Daivataiś ca samāgamya draṣṭum abhyāgato raṇam।
Upāgamyābravīd rāmam agastyo bhagavān ṛṣiḥ॥

 अर्थ:
देवताओं ने युद्ध देखने के लिए एकत्र होकर भगवान अगस्त्य ऋषि को भेजा, जिन्होंने आकर श्रीराम से कहा...

 राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥3॥

 Rāma rāma mahābāho śṛṇu guhyaṁ sanātanam।
Yena sarvān arīn vatsa samare vijayiṣyasi॥

 अर्थ:
हे महाबाहो राम! एक सनातन और गोपनीय उपाय सुनो, जिससे तुम युद्ध में अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करोगे।

 आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम्॥4॥

 Ādityahṛdayaṁ puṇyaṁ sarvaśatruvināśanam।
Jayāvahaṁ japennityaṁ akṣayyaṁ paramaṁ śivam॥

 अर्थ:
यह आदित्यहृदय स्तोत्र पवित्र, शत्रुनाशक, विजयदायक, अक्षय और परम कल्याणकारी है — इसका नित्य जप करो।

 सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥5॥

 Sarvamaṅgala-māṅgalyaṁ sarvapāpa-praṇāśanam।
Cintāśoka-praśamanam āyurvardhanam uttamam॥

 अर्थ:
यह स्तोत्र सभी मंगलों में श्रेष्ठ है, पापों का नाश करता है, चिंता और शोक को शांत करता है, और उत्तम आयु प्रदान करता है।

 रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥6॥

 Raśmimantaṁ samudyantaṁ devāsura-namaskṛtam।
Pūjayasva vivasvantaṁ bhāskaraṁ bhuvaneśvaram॥

 अर्थ:
उगते हुए किरणों से युक्त, देवताओं और असुरों द्वारा पूजित, भुवन नायक सूर्य देव की पूजा करो।

 सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः॥7॥

 Sarvadevātmako hyeṣa tejasvī raśmibhāvanaḥ।
Eṣa devāsuragaṇān lokān pāti gabhastibhiḥ॥

 अर्थ:
यह सूर्य देव सभी देवताओं के आत्मस्वरूप हैं, तेजस्वी हैं और अपनी किरणों से देवताओं, असुरों तथा समस्त लोकों की रक्षा करते हैं।

 एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥8॥

 Eṣa brahmā ca viṣṇuś ca śivaḥ skandaḥ prajāpatiḥ।
Mahendro dhanadaḥ kālo yamaḥ somo hyapāṁ patiḥ॥

 अर्थ:
यह सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा और जल के देवता वरुण हैं।

 पितरो वसवः साध्याः अश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्यज्ञोऽग्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥9॥

Pitaro vasavaḥ sādhyaḥ aśvinau maruto manuḥ।
Vāyur yajño 'gniḥ prājāprāṇa ṛtukartā prabhākaraḥ॥

 अर्थ:
ये सूर्य ही पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुतगण, मनु, वायु, यज्ञ, अग्नि, प्राण और ऋतु का निर्माण करने वाले हैं।

 आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुः हिरण्यरेता दिवाकरः॥10॥

 Ādityaḥ savitā sūryaḥ khagaḥ pūṣā gabhastimān।
Suvarṇasadṛśo bhānuḥ hiraṇyaretā divākaraḥ॥

 अर्थ:
ये आदित्य, सविता, सूर्य, आकाश में चलने वाले, पूषा, किरणों से युक्त, सुवर्ण के समान तेजस्वी, भानु, हिरण्यरेता और दिन को प्रकाशित करने वाले हैं।

 हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुः त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्॥11॥

 Haridaśvaḥ sahasrārciḥ saptasaptir marīcimān।
Timironmathanaḥ śambhuḥ tvaṣṭā mārtaṇḍa aṁśumān॥

 अर्थ:
ये सूर्य हरे रंग के घोड़ों वाले हैं, सहस्रों किरणों से युक्त हैं, सात अश्वों के रथ पर सवार हैं, अंधकार का नाश करते हैं और शुभ व तेजस्वी स्वरूप हैं।

 हिरण्यगर्भः शिशिरः तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥12॥

 Hiraṇyagarbhaḥ śiśiraḥ tapano bhāskaro raviḥ।
Agnigarbho 'diteḥ putraḥ śaṅkhaḥ śiśiranāśanaḥ॥

 अर्थ:
ये सूर्य हिरण्यगर्भ, शिशिर (ठंडी हरने वाले), ताप देने वाले, भास्कर, रवि, अग्नि से उत्पन्न, अदिति पुत्र, और शिशिर ऋतु का नाश करने वाले हैं।

 व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥13॥

 Vyomanātha tamo-bhedī ṛg-yajuḥ-sāma-pāragaḥ।
Ghanavṛṣṭir apāṁ mitro vindhyavīthī-plavaṅgamaḥ॥

 अर्थ:
ये आकाश के स्वामी हैं, अंधकार को दूर करने वाले हैं, वेदत्रयी के ज्ञाता हैं, वर्षा प्रदान करते हैं, जल के मित्र हैं और विन्ध्याचल के ऊपर से यात्रा करते हैं।

 आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥14॥

 Ātapī maṇḍalī mṛtyuḥ piṅgalaḥ sarvatāpanaḥ।
Kavirviśvo mahātejāḥ raktaḥ sarvabhavodbhavaḥ॥

 अर्थ:
ये सूर्य तप देने वाले हैं, मण्डलाकार हैं, मृत्यु के स्वरूप हैं, पिंगल वर्ण के हैं, संसार को तपाने वाले हैं, कवि (सर्वज्ञ) हैं, महातेजस्वी हैं और समस्त सृष्टि के कारण हैं।

 नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥15॥

 Nakṣatragrahatārāṇām adhipo viśvabhāvanaḥ।
Tejasām api tejasvī dvādaśātman namo 'stu te॥

 अर्थ:
आप नक्षत्रों, ग्रहों और तारों के अधिपति हैं, समस्त जगत की रचना करने वाले हैं, तेजस्वियों में भी सर्वाधिक तेजस्वी हैं, बारह रूपों वाले (द्वादश आदित्य) आपको नमस्कार है।

 

 नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥16॥

 Namaḥ pūrvāya giraye paścimāyādraye namaḥ।
Jyotirgaṇānāṁ pataye dinādhipataye namaḥ॥

 अर्थ:
पूर्व दिशा के पर्वतों को और पश्चिम दिशा के पर्वतों को नमस्कार है। ज्योतिर्मंडल के स्वामी और दिन के अधिपति सूर्यदेव को नमस्कार है।

 जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥17॥

 Jayāya jayabhadrāya haryaśvāya namo namaḥ।
Namo namaḥ sahasrāṁśo ādityāya namo namaḥ॥

 अर्थ:
विजय के स्वरूप, कल्याणदायक, हरित अश्वों वाले, हजार किरणों से युक्त आदित्य को बारम्बार नमस्कार है।


नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥18॥

 Nama ugrāya vīrāya sāraṅgāya namo namaḥ।
Namaḥ padmaprabodhāya mārtāṇḍāya namo namaḥ॥

 अर्थ:
प्रचंड स्वरूप वाले, वीर, तेजस्वी, कमल को खिलाने वाले तथा मार्तण्ड (अदिति पुत्र) को नमस्कार है।

 ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥19॥

 Brahmeśānācyuteśāya sūryāyādityavarcase।
Bhāsvate sarvabhakṣāya raudrāya vapuṣe namaḥ॥

 अर्थ:
जो ब्रह्मा, ईश्वर, अच्युत के रूप हैं; तेजस्वी सूर्य, समस्त तेजों के स्वामी, रौद्र रूपधारी और भास्वर रूप वाले हैं – उन्हें नमस्कार है।

 तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥20॥

 Tamoghnāya himaghnāya śatrughnāyāmitātmane।
Kṛtaghnaghnāya devāya jyotiṣāṁ pataye namaḥ॥

 अर्थ:
अंधकार का नाश करने वाले, शीतहरण करने वाले, शत्रु-विनाशक, अपरिमित आत्मा, कृतघ्नों का नाश करने वाले, देवताओं के देव और ज्योति का स्वामी – आपको प्रणाम।

 तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥21॥

 Taptacāmīkarābhāya vahnaye viśvakarmaṇe।
Namastamo'bhinighnāya rucaye lokasākṣiṇe॥

 अर्थ:
तप्त सोने जैसे स्वरूप, अग्निरूप, सृष्टिकर्ता, अंधकार को दूर करने वाले, प्रकाश स्वरूप तथा साक्षी रूप में स्थित देव को प्रणाम।

 नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥22॥

 Nāśayaty eṣa vai bhūtaṁ tadeva sṛjati prabhuḥ।
Pāyaty eṣa tapaty eṣa varṣaty eṣa gabhastibhiḥ॥

 अर्थ:
यही सूर्य देव समस्त प्राणियों का नाश करते हैं, वही उन्हें पुनः उत्पन्न करते हैं, वही पालन करते हैं, ताप देते हैं और अपनी किरणों से वर्षा भी करते हैं।

 एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥23॥

Eṣa suptēṣu jāgarti bhūteṣu pariniṣṭhitaḥ।
Eṣa evāgnihotraṁ ca phalaṁ caivāgnihotriṇām॥

हे राघव! जो पुरुष संकटों, कष्टों, जंगलों और भय के समय सूर्यदेव का स्मरण करता है, वह कभी दुखी नहीं होता।

 अर्थ:
जब सब सोते हैं तब यह सूर्य जागते हैं, सभी प्राणियों में स्थित हैं। अग्निहोत्र भी यही हैं और उसका फल भी यही प्रदान करते हैं।

 वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥24॥

 Vedāś ca kratavaś caiva kratūnāṁ phalam eva ca।
Yāni kṛtyāni lokeṣu sarva eṣa raviḥ prabhuḥ॥

 अर्थ:
वेद, यज्ञ, यज्ञों का फल और संसार के समस्त कर्मों का आधार – यह सब सूर्यदेव ही हैं।

 एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥25॥

 Enam āpatsu kṛcchreṣu kāntāreṣu bhayeṣu ca।
Kīrtayan puruṣaḥ kaścin nāvasīdati rāghava॥


  पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥26॥

 Pūjayasvainam ekāgro devadevaṁ jagatpatim।
Etat triguṇitaṁ japtvā yuddheṣu vijayiṣyasi॥

अर्थ:
एकाग्र चित्त होकर इस देवों के देव, जगत्पति सूर्य की पूजा करो। इस स्तोत्र का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय प्राप्त करोगे।

 अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम्॥27॥

 Asmin kṣaṇe mahābāho rāvaṇaṁ tvaṁ vadhiṣyasi।
Evam uktvā tadāgastyo jagāma ca yathāgatam॥

 अर्थ:
हे महाबाहो! इस क्षण तुम रावण का वध करोगे। ऐसा कहकर अगस्त्य ऋषि लौट गए।

 एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥28॥

 Etac chrutvā mahātejā naṣṭaśoko 'bhavat tadā।
Dhārayām āsa suprīto rāghavaḥ prayatātmavān॥

 अर्थ:
इस उपदेश को सुनकर तेजस्वी राघव का शोक समाप्त हो गया। उन्होंने पवित्र भाव से इसे हृदय में धारण किया।

 आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥29॥

 Ādityaṁ prekṣya japtvā tu paraṁ harṣam avāptavān।
Trir ācamya śucir bhūtvā dhanur ādāya vīryavān॥

 अर्थ:
आदित्य को देखकर और जप करके श्रीराम अत्यंत प्रसन्न हुए। तीन बार आचमन कर शुद्ध होकर धनुष उठाया।

 रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वधेतस्य धृतोऽभवत्॥30॥

 Rāvaṇaṁ prekṣya hṛṣṭātmā yuddhāya samupāgamat।
Sarvayatnena mahatā vadhe tasya dhṛto 'bhavat॥

 अर्थ:
श्रीराम हर्षित होकर रावण का वध करने के लिए युद्ध हेतु आगे बढ़े और पूरी शक्ति से संकल्पित हुए।

 अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं
मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा
सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥31॥

 Atha raviravadannirīkṣya rāmaṁ
muditamanāḥ paramaṁ prahṛṣyamāṇaḥ।
Niśicarapati-saṁkṣayaṁ viditvā
suragaṇamadhyagato vacas tvareti॥

 अर्थ:
उस समय आदित्यदेव राम को देखकर हर्ष से भर गए। जब उन्होंने रावण के विनाश को निकट देखा तो देवताओं के मध्य में रहते हुए बोले – "त्वरित हो जाओ!"



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