संस्कृत:
ॐ अस्य श्रीऋणविमोचनमहागणपति-स्तोत्रमन्त्रस्य
शुक्राचार्य ऋषिः । ऋणविमोचनमहागणपतिर्देवता ।
अनुष्टुप् छन्दः । ऋणविमोचनमहागणपतिप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः॥
Om Asya Shri R̥ṇa Vimochana Mahāgaṇapati Stotra Mantrasya
Shukrāchārya Ṛṣiḥ । R̥ṇa Vimochana Mahāgaṇapatiḥ Devatā ।
Anuṣṭup Chhandaḥ । R̥ṇa Vimochana Mahāgaṇapati Prītyarthe Jape Viniyogaḥ ॥
अर्थ:
इस ऋणविमोचन श्री गणेश स्तोत्र का ऋषि शुक्राचार्य हैं, देवता ऋणविमोचन महागणपति हैं, छंद अनुष्टुप है। इसका जप ऋण से मुक्ति के लिए किया जाता है।
ॐ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम्।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये॥१॥
Om smarāmi devadeveśaṁ vakratuṇḍaṁ mahābalam।
ṣaḍakṣaraṁ kṛpāsindhuṁ namāmi r̥ṇamuktaye॥1॥
मैं देवों के देव, वक्रतुण्ड और महाबलशाली श्री गणेश का स्मरण करता हूँ, जो कृपा के सागर हैं। मैं उन्हें ऋणमुक्ति के लिए नमस्कार करता हूँ।
महागणपतिं वन्दे महासेतुं महाबलम्।
एकमेवाद्वितीयं तु नमामि ऋणमुक्तये॥२॥
Mahāgaṇapatiṁ vande mahāsetuṁ mahābalam।
ekamevādvitiyaṁ tu namāmi r̥ṇamuktaye॥2॥
मैं महागणपति की वंदना करता हूँ, जो महान सेतु और असीम बलशाली हैं। जो अद्वितीय हैं, उनको ऋण से मुक्ति हेतु प्रणाम करता हूँ।
एकाक्षरं त्वेकदन्तं एकं ब्रह्म सनातनम्।
महाविघ्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तये॥३॥
Ekākṣaraṁ tvekadantaṁ ekaṁ brahma sanātanam।
mahāvighnaharaṁ devaṁ namāmi r̥ṇamuktaye॥3॥
जो एकाक्षर (ॐ) हैं, एकदन्त हैं, सनातन ब्रह्मस्वरूप हैं, और महान विघ्नों का नाश करते हैं — ऐसे देव को मैं ऋण से मुक्ति के लिए प्रणाम करता हूँ।
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णं शुक्लगन्धानुलेपनम्।
सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तये॥४॥
śuklāmbaraṁ śuklavarṇaṁ śuklagandhānulepanam।
sarvaśuklamayaṁ devaṁ namāmi r̥ṇamuktaye॥4॥
जो श्वेत वस्त्रधारी, श्वेत वर्ण के, श्वेत गंध से लेपित हैं — ऐसे सम्पूर्ण श्वेत रूप वाले भगवान को मैं ऋणमुक्ति हेतु प्रणाम करता हूँ।
रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम्।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये॥५॥
raktāmbaraṁ raktavarṇaṁ raktagandhānulepanam।
raktapuṣpaiḥ pūjyamānaṁ namāmi r̥ṇamuktaye॥5॥
जो रक्तवस्त्र धारण करते हैं, रक्तवर्ण के हैं, रक्तगंध से अभिषिक्त हैं, और लाल पुष्पों से पूजित होते हैं — उन्हें मैं ऋण से मुक्ति के लिए नमस्कार करता हूँ।
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम्।
कृष्णयज्ञोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये॥६॥
kṛṣṇāmbaraṁ kṛṣṇavarṇaṁ kṛṣṇagandhānulepanam।
kṛṣṇayajñopavītaṁ ca namāmi r̥ṇamuktaye॥6॥
जो कृष्णवर्ण और कृष्णवस्त्रधारी हैं, कृष्णगंध से अभिषिक्त हैं, और कृष्ण यज्ञोपवीत धारण करते हैं — उन भगवान को ऋण से छुटकारे हेतु प्रणाम करता हूँ।
पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम्।
पीतपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये॥७॥
pītāmbaraṁ pītavarṇaṁ pītagandhānulepanam।
pītapuṣpaiḥ pūjyamānaṁ namāmi r̥ṇamuktaye॥7॥
जो पीले वस्त्र पहनते हैं, पीत वर्ण के हैं, पीले गंध से लेपित हैं, पीले पुष्पों से पूजित होते हैं — उन ऋणविमोचक भगवान को प्रणाम करता हूँ।
सर्वात्मकं सर्ववर्णं सर्वगन्धानुलेपनम्।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये॥८॥
sarvātmakaṁ sarvavarṇaṁ sarvagandhānulepanam।
sarvapuṣpaiḥ pūjyamānaṁ namāmi r̥ṇamuktaye॥8॥
जो सम्पूर्ण सृष्टि के आत्मा हैं, सभी रंगों में रमण करते हैं, समस्त गंधों से सुगंधित हैं और सभी पुष्पों से पूज्य हैं — उन्हें ऋणमुक्ति हेतु नमस्कार करता हूँ।
एतद् ऋणहरं स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
षण्मासाभ्यन्तरे तस्य ऋणच्छेदो न संशयः॥९॥
etad r̥ṇaharaṁ stotraṁ trisandhyaṁ yaḥ paṭhennaraḥ।
ṣaṇmāsābhyantare tasya r̥ṇacchedo na sanśayaḥ॥9॥
जो व्यक्ति इस ऋणहर स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन तीनों संधियों (प्रातः, मध्यान्ह, सायं) में करता है, वह छह महीनों के भीतर ऋणमुक्त हो जाता है — इसमें कोई संशय नहीं।
सहस्रदशकं कृत्वा ऋणमुक्तो धनी भवेत्॥
sahasradaśakaṁ kṛtvā r̥ṇamukto dhanī bhavet॥
जो इस स्तोत्र का हजार बार पाठ करता है, वह पूर्णतः ऋणमुक्त होकर धनवान बन जाता है।
॥ इति रुद्रयामले ऋणमुक्ति श्री गणेशस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
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