Vishnu Dashavtar stotra

श्रेणी:Vishnu Stotra
उपश्रेणी:Shri Vishnu Stotram | Powerful Daily Prayer for Protection and Prosperity
Vishnu Dashavtar stotra
Vishnu Dashavtar stotra  Icon

Introduction

  • This stotram glorifies the ten divine incarnations (Dashavatara) of Lord Vishnu.
  • It is composed by Jayadeva Goswami, and is a part of his famous work Geet Govind.
  • Each avatar in the stotra symbolizes the restoration of Dharma and destruction of evil.
  • Reciting this stotram brings devotion, peace, and protection from troubles.
  • It is considered a simple and powerful path to divine grace and liberation in Kaliyuga.




श्री विष्णु दशावतार स्तोत्रम्

(श्री जयदेव कवि द्वारा रचित)

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम्।
विहितवहित्रचरित्रमखेदम्॥
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे॥

Pralayapayodhijale dhṛtavānasi vedam।
Vihitavahitra-caritram-akhedam॥
Keshava dhṛta mīna-śarīra jaya jagadīśa hare॥
प्रलय के जल में आपने वेदों की रक्षा के लिए मछली (मत्स्य) का रूप धारण किया।
आपका यह कार्य नाव के संचालन जैसा महान और निरंतर था।
हे केशव! हे जगन्नाथ! मत्स्य रूप धारण करनेवाले प्रभो! जय हो!

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे॥
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे॥

Kṣitir ativipulatere tava tiṣṭhati pṛṣṭhe।
Dharaṇi-dharaṇa-kiṇa-cakra-gariṣṭhe॥
Keshava dhṛta kaccapa-rūpa jaya jagadīśa hare॥
जब आपने विशाल कच्छप (कूर्म) रूप धारण किया, तब धरती आपके पीठ पर स्थित हुई।
मन्दराचल को धारण करने के लिए आपने कच्छप का रूप लिया।
हे केशव! हे जगदीश! जय हो उस कूर्म रूपधारी भगवान की।



वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना।
शशिनि कलङ्ककलेव निमग्ना॥
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे॥

Vasati daśana-śikhare dharaṇī tava lagnā।
Śaśini kalaṅka-kaleva nimagnā॥
Keshava dhṛta sūkara-rūpa jaya jagadīśa hare॥
आपके वराह रूप के दांतों के शिखर पर धरती को रखा गया।
जैसे चंद्रमा पर कलंक होता है, वैसे ही वह जल में डूबी हुई थी।
हे केशव! वराह रूपधारी प्रभो! आपकी जय हो!

तव करकमलवरे नखमद्भुतशृङ्गं।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम्॥
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे॥

Tava kara-kamala-vare nakham adbhuta-śṛṅgaṁ।
Dalita-hiraṇyakaśipu-tanu-bhṛṅgam॥
Keshava dhṛta narahari-rūpa jaya jagadīśa hare॥
आपके कमल समान हाथों से निकले नखों ने अद्भुत रूप से हिरण्यकशिपु के शरीर को नष्ट कर दिया।
आपने नरसिंह रूप में प्रकट होकर धर्म की रक्षा की।
हे केशव! जय हो नरहरि रूपधारी जगन्नाथ!

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन।
पदनखनीरजनितजनपावन॥
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे॥

Chalayasi vikramaṇe bali-madbhuta-vāmana।
Pada-nakha-nīra-janita-jana-pāvana॥
Keshava dhṛta vāmana-rūpa jaya jagadīśa hare॥

आपने वामन रूप में तीन पग भूमि माँगकर बलि को छलपूर्वक बाँध दिया।
आपके चरणों से निकला पवित्र जल सबको पवित्र करने वाला बना।
हे वामन रूपधारी केशव! आपकी जय हो!

क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्।
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम्॥
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे॥

अर्थ:Kṣatriya-rudhira-maye jagad-apagata-pāpam।
Snapayasi payasi śamita-bhava-tāpam॥
Keshava dhṛta bhṛgupati-rūpa jaya jagadīśa hare॥

परशुराम रूप में आपने अधर्मी क्षत्रियों का रक्त बहाकर पृथ्वी को पापमुक्त किया।
आपने संसार के कष्टों को शांत किया।
हे भृगुपति रूपधारी केशव! आपकी जय हो!

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम्।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम्॥
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे॥

Vitarasi dikṣu raṇe dik-patika-manīyam।
Daśa-mukha-mauli-baliṁ ramaṇīyam॥
Keshava dhṛta raghu-pati-veṣa jaya jagadīśa hare॥
राम रूप में आपने युद्धभूमि में दिशाओं में धर्म की विजय पताका लहराई।
रावण के दस सिरों की आहुति से धर्म की स्थापना की।
हे रघुपति रूपधारी प्रभो! आपकी जय हो!

वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम्।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम्॥
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे॥
Vahasi vapuṣi viśade vasanaṁ jaladābham।
Hala-hati-bhīti-milita-yamunābham॥
Keshava dhṛta haladhara-rūpa jaya jagadīśa hare॥

बलराम रूप में आप ने जल जैसी निर्मल काया में गहरे नीले वस्त्र धारण किए।
हल से आपने यमुनाजी को अपनी ओर खींचा और असुरों को भयभीत किया।
हे हलधर रूपधारी केशव! जय हो!

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम्।
सदयहृदयदर्शितपशुघातम्॥
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे॥

Nindasi yajña-vidher ahaha śruti-jātam।
Sadaya-hṛdaya-darśita-paśu-ghātam॥
Keshava dhṛta buddha-śarīra jaya jagadīśa hare॥
आपने बुद्ध रूप में पशुबलि युक्त यज्ञ की निंदा की।
आपका करुणामय हृदय सभी प्राणियों पर दया रखता है।
हे बुद्ध रूपधारी प्रभो! आपकी जय हो!

म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम्।
धूमकेतुमिव किमपि करालम्॥
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे॥
Mleccha-nivaha-nidhane kalayasi karavālam।
Dhūmaketum iva kimapi karālam॥
Keshava dhṛta kalki-śarīra jaya jagadīśa hare॥
आप कल्कि रूप में म्लेच्छों (अधार्मिकों) का नाश करने के लिए तलवार धारण करेंगे।
आपका प्रलयंकारी रूप धूमकेतु के समान भयानक होगा।
हे भविष्य के कल्कि रूपधारी प्रभो! आपकी जय हो!

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम्।
श‍ृणु सुखदं शुभदं भवसारम्॥
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे॥
Śrī-jayadeva-kaver idam uditam udāram।
Śṛṇu sukhadaṁ śubhadaṁ bhava-sāram॥
Keshava dhṛta daśa-vidha-rūpa jaya jagadīśa hare॥
  यह महान स्तोत्र जयदेव कवि द्वारा रचा गया है।
जो इसे पढ़े या सुने, उसे सुख, कल्याण और जीवन का सार प्राप्त होता है।
हे दशावतारधारी प्रभो! आपकी जय हो!  
                                                             
  ॥ इति श्री जयदेवविरचितं दशावतार स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Iti Shri Jayadeva Viracitam Dashavatara Stotram Sampūrṇam

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