श्री सत्यनारायण व्रत कथा

श्री सत्यनारायण व्रत कथा

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श्री सत्यनारायण व्रत कथा  

प्रथम अध्याय 

महर्षि वेदव्यास जी कहते हैं कि बहुत समय पहले नैमिषारण्य नामक पवित्र तीर्थस्थल पर शौनक आदि 88,000 ऋषि-मुनि एकत्र हुए और उन्होंने पुराणों के ज्ञाता सूतजी से यह प्रश्न किया:

"हे सूतजी! कृपया बताइए कि इस कलियुग में, जहाँ लोग वेद-विद्या और धर्म से दूर होते जा रहे हैं, वे किस तरह भगवान की भक्ति करें और अपने जीवन का उद्धार करें? ऐसा कौन-सा व्रत या उपाय है जिसे करके कम समय में अधिक पुण्य और इच्छित फल प्राप्त हो सके?"

इस पर सूतजी बोले:

"हे पुण्यात्मा ऋषिगण! आपने बहुत ही उत्तम और कल्याणकारी प्रश्न किया है। मैं आपको एक अत्यंत पवित्र व्रत के बारे में बताता हूँ, जिसके बारे में पहले महर्षि नारद जी ने भगवान लक्ष्मीनारायण से पूछा था, और भगवान ने उन्हें विस्तार से बताया था। अब आप इस कथा को ध्यान से सुनिए।"

फिर सूतजी आगे कहते हैं:

"यह कथा सब समयों में शुभ फल देने वाली है। यह ताप, दुख और बंधनों से मुक्ति दिलाती है। यह कथा हर स्थान पर सहायक होती है और भगवान के नाम, चरित्र और गुणों का गायन किए बिना जीवन से पाप नहीं मिटते।"

एक बार नारद मुनि, जो हमेशा लोकों के कल्याण के लिए भ्रमण करते रहते हैं, मृत्युलोक (पृथ्वी) पर आए। उन्होंने देखा कि लोग अपने कर्मों के कारण बहुत तरह के कष्ट भोग रहे हैं। तब उन्होंने विचार किया, "ऐसा कौन-सा उपाय हो जिससे प्राणियों का दुख कम हो सके?"

यह सोचकर वे भगवान विष्णु के लोक (वैष्णव लोक) पहुँचे। वहाँ भगवान को चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए देखा और उनकी स्तुति करने लगे। नारदजी ने कहा:

"हे प्रभु! आप सर्वशक्तिमान हैं, आपकी महिमा को वाणी और मन भी नहीं जान सकते। आप ही सृष्टि के कारण हैं, आप भक्तों के कष्ट हरने वाले हैं – आपको मेरा बारंबार प्रणाम।"

भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले:

"हे नारद! आपका यहाँ आगमन किस उद्देश्य से हुआ है? जो कुछ भी आपके मन में है, संकोच न करें, मुझे बताइए।"

नारदजी बोले:

"हे प्रभु! पृथ्वी लोक के मनुष्य अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण दुखों से पीड़ित हैं। हे दयालु! कृपया बताइए कि ऐसा कौन-सा उपाय है जिससे कम प्रयास में उनका कष्ट दूर हो सके?"

भगवान विष्णु बोले:

"हे नारद! तुमने बहुत उत्तम प्रश्न किया है। मनुष्य को मोह से मुक्त करने वाला, पुण्य देने वाला और स्वर्ग-मोक्ष प्रदान करने वाला जो व्रत है, वह है — श्री सत्यनारायण व्रत।"

"जो भी श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को विधि-विधान से करेगा, वह जीवन में सभी सुख भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त करेगा।"

नारदजी ने पूछा:

"हे प्रभु! इस व्रत की विधि क्या है? इसे किसने पहले किया? कब और कैसे करना चाहिए?"

भगवान विष्णु ने बताया:

"यह व्रत सब दुखों को दूर करने वाला है और हर स्थान पर विजय दिलाता है। इसे कोई भी व्यक्ति, किसी भी दिन संध्या के समय, परिवार और ब्राह्मणों के साथ कर सकता है। पूजा में नैवेद्य, केले, घी, शहद, गुड़ या शक्कर, दूध, और गेहूँ का आटा (या साठी का चूर्ण) अर्पण करें। ब्राह्मणों और बंधु-बांधवों को भोजन कराकर फिर स्वयं भोजन करें। रात को भगवान के भजन-कीर्तन करें। जो भी इस व्रत को श्रद्धा से करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। विशेष रूप से कलियुग में यह व्रत बहुत ही प्रभावशाली और सहज पुण्यदायक है।"

॥ इस प्रकार श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय समाप्त हुआ ॥

श्री सत्यनारायण व्रत कथा — द्वितीय अध्याय

महर्षि सूतजी ऋषियों से कहते हैं, “हे मुनियों! अब मैं तुम्हें उन लोगों की कथा सुनाता हूँ जिन्होंने प्राचीन काल में सत्यनारायण भगवान का यह व्रत किया और अपने जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त की। ध्यानपूर्वक सुनो।

काशीपुर नामक एक सुंदर नगरी में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण रहता था। वह रोज भूख-प्यास से पीड़ित और चिंता में डूबा रहता। एक दिन, भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान विष्णु स्वयं वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके उसके पास आए और बोले, 'हे ब्राह्मण! तुम इतने दुखी क्यों रहते हो? क्या बात है? अपने दुखों की कथा मुझसे कहो।'

ब्राह्मण ने दुखी होकर उत्तर दिया, ‘हे प्रभु! मैं निर्धन हूँ, भिक्षा मांगते हुए दिन-रात भटकता रहता हूँ। यदि आप कृपा करके कोई उपाय बताएं जिससे मेरी दरिद्रता दूर हो सके, तो मैं कृतार्थ हो जाऊँगा।’

भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण के रूप में मुस्कराए और बोले, 'हे विप्र! श्री सत्यनारायण व्रत बहुत ही फलदायक है। इसका विधिपूर्वक पूजन करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है और उसे मनचाहा फल प्राप्त होता है।'

भगवान ने ब्राह्मण को व्रत की विधि विस्तार से बताई और फिर अदृश्य हो गए। उस निर्धन ब्राह्मण ने निश्चय किया कि वह निश्चित रूप से इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करेगा। वह अपने घर लौटा, लेकिन भगवान के वचन उसे सारी रात सोने नहीं दिए।

सुबह होते ही वह भिक्षा मांगने निकला और संयोगवश उस दिन उसे अपेक्षा से अधिक धन प्राप्त हुआ। उसने उसी धन से व्रत की सामग्री जुटाई और अपने परिवारजनों के साथ विधिपूर्वक सत्यनारायण भगवान का व्रत किया। इसके बाद उसके जीवन में चमत्कारी परिवर्तन हुआ—वह धीरे-धीरे धनवान बन गया।

अब वह ब्राह्मण हर महीने इस व्रत को करने लगा। यह सिद्ध है कि जो व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा से श्री सत्यनारायण व्रत करता है, वह सभी दुखों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

इसके बाद ऋषियों ने सूतजी से पूछा, ‘हे महात्मा! इस ब्राह्मण की कथा तो हमने सुन ली। कृपया अब बताइये कि इस ब्राह्मण को देखकर और किस-किस ने इस व्रत को किया?’

सूतजी बोले, “हे मुनियों! अब मैं आपको एक और कथा सुनाता हूँ। जब वह ब्राह्मण सत्यनारायण व्रत कर रहा था, उसी समय एक वृद्ध लकड़हारा, जो लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रखे हुए था, वहां आया। प्यासा था, लेकिन ब्राह्मण के घर में हो रही पूजा देखकर उसकी प्यास भूल गई। वह आश्चर्यचकित होकर ब्राह्मण से पूछने लगा, 'हे विप्र! आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं? और इस व्रत से क्या फल मिलता है? कृपया बताइये।’

ब्राह्मण ने उत्तर दिया, ‘यह श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन है। इसी की कृपा से मेरे जीवन में समृद्धि आई है।’

लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ। भगवान का चरणामृत ग्रहण किया, प्रसाद खाया और मन में निश्चय किया कि वह भी यह व्रत अवश्य करेगा।

अगले दिन वह लकड़हारा अपनी लकड़ियाँ बेचने एक संपन्न नगर गया। उस दिन लकड़ियों का मूल्य उसे चार गुना मिला। बहुत प्रसन्न होकर वह पूजा की सभी सामग्री—केले, दूध, घी, शक्कर, शहद, दही और गेहूं का आटा आदि—लेकर घर लौटा और अपने परिवार के साथ व्रत किया।

इस व्रत की कृपा से वह लकड़हारा भी धन-धान्य से भर गया और अंततः सभी सांसारिक सुखों को भोग कर भगवान के धाम चला गया।

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा द्वितीय अध्याय सम्पूर्ण ॥

श्री सत्यनारायण व्रत कथा – तृतीय अध्याय 

सूतजी बोले:

हे ऋषियों! अब मैं आपको एक और कथा सुनाता हूँ, कृपया ध्यानपूर्वक सुनें।

प्राचीन काल में उल्कामुख नाम के एक ज्ञानी और धर्मनिष्ठ राजा थे। वे संयमी, सत्यवादी और सदैव प्रजा के कल्याण में लगे रहते थे। हर दिन वे मंदिरों में जाते, और ज़रूरतमंदों की सहायता करते। उनकी पत्नी एक सती, साध्वी और अत्यंत सुंदर स्त्री थी।

एक दिन, राजा और रानी भद्रशीला नदी के तट पर विधिपूर्वक श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत कर रहे थे। उसी समय वहाँ एक साधु नामक वैश्य (व्यापारी) आया, जो व्यापार के लिए अपनी नाव से वहाँ पहुँचा था। उसने राजा को पूजा करते देखा और श्रद्धा से पूछा,

“हे राजन! आप यह किस देवता की पूजा कर रहे हैं? कृपया मुझे भी बताइए।”

राजा ने उत्तर दिया,

“हे साधुजी! मैं भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहा हूँ ताकि हमें संतान की प्राप्ति हो। यह व्रत बहुत ही फलदायक है।”

साधु वैश्य ने आदर से कहा,

“हे राजन! कृपया इसकी विधि मुझे भी बताइए। मेरी भी कोई संतान नहीं है। मैं इस व्रत को अवश्य करूंगा।”

राजा ने पूरी विधि बताई। व्यापारी घर लौट आया और अपनी पत्नी लीलावती से सब कुछ कहा। उसने प्रण किया कि –

“जब हमारे घर संतान होगी, तब मैं यह व्रत जरूर करूंगा।”

कुछ समय बाद, भगवान की कृपा से उसकी पत्नी गर्भवती हुई और दसवें महीने में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। उन्होंने उसका नाम रखा कलावती।

कन्या धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। एक दिन, लीलावती ने अपने पति से कहा,

“आपने व्रत करने का जो संकल्प लिया था, अब कृपया उसे पूरा कीजिए।”

परंतु साधु ने उत्तर दिया,

“जब कलावती का विवाह होगा, तब व्रत करूँगा।”

इसके बाद व्यापारी विदेश चला गया।

कुछ वर्षों बाद जब वह लौटा, तो देखा कि उसकी बेटी सयानी हो चुकी है। उसने एक योग्य वर की खोज में अपने दूत को भेजा, जिसने कंचननगर से एक उपयुक्त वणिकपुत्र लाकर दिया। दोनों का विवाह धूमधाम से कर दिया गया। दुर्भाग्यवश, विवाह में वह श्री सत्यनारायण व्रत करना भूल गया, जिससे भगवान नाराज हो गए और वैश्य को दुख भोगने का श्राप दिया।

कुछ समय बाद वह अपने दामाद के साथ समुद्र किनारे रत्नसारपुर नगर व्यापार करने गया। वहाँ के राजा चन्द्रकेतु थे। एक दिन, एक चोर राजा का खजाना चुराकर भागा और डर के मारे वह सारा धन वैश्य की नाव में छुपाकर भाग गया।

जब सिपाहियों ने वैश्य की नाव में धन देखा, तो उन्हें चोर समझकर राजा के सामने ले गए। राजा ने बिना कुछ पूछे उन्हें कारावास में डालने का आदेश दे दिया। उनका सारा धन भी जब्त कर लिया गया।

इधर, वैश्य की पत्नी लीलावती और बेटी कलावती पर भी विपत्ति आ गई। घर का सारा धन लुट गया। एक दिन भूख से व्याकुल कलावती एक ब्राह्मण के घर गई, जहाँ श्री सत्यनारायण व्रत हो रहा था। उसने कथा सुनी, प्रसाद ग्रहण किया और मन में व्रत करने का संकल्प लिया।

घर आकर जब माँ ने पूछा कि कहाँ गई थी, तो उसने सब बताया और कहा,

“हे माँ! मुझे भी यह व्रत करना है।”

माँ-बेटी ने मिलकर पूरे नियमों के साथ व्रत किया और प्रार्थना की,

“हे प्रभु! यदि कोई भूल हमसे हुई हो तो क्षमा करें और मेरे पति व दामाद को शीघ्र घर लौटाएं।”

भगवान सत्यनारायण व्रत से प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा चन्द्रकेतु को स्वप्न में दर्शन देकर कहा:

“जिन दो लोगों को तुमने बंदी बनाया है, वे निर्दोष हैं। उनका धन लौटा दो और उन्हें छोड़ दो, वरना तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा।”

सुबह होते ही राजा ने दोनों को बुलवाया, क्षमा मांगी और उन्हें पहले से दुगुना धन लौटाया। वैश्य और उसका दामाद प्रसन्न होकर अपने नगर लौट आए।

॥ इस प्रकार श्री सत्यनारायण व्रत कथा का तृतीय अध्याय पूर्ण हुआ ॥


श्री सत्यनारायण व्रत कथा – चतुर्थ अध्याय (सरल भाषा में)

सूत जी बोले:

हे मुनियों! अब आगे की कथा सुनिए।

जब साधु वैश्य व्यापार से लौटते हुए अपने नगर की ओर रवाना हुआ, तो रास्ते में भगवान श्री सत्यनारायण दण्डी सन्यासी का रूप धारण कर उसकी परीक्षा लेने के लिए प्रकट हुए। उन्होंने वैश्य से पूछा,

"हे वैश्य! तेरी नाव में क्या है?"

यह सुनकर अभिमानी वैश्य हँसते हुए बोला,

"हे संन्यासी! आप क्यों पूछते हैं? क्या आपको कुछ धन चाहिए? मेरी नाव में बेल के पत्ते हैं।"

वैश्य के झूठे और अहंकारी उत्तर से भगवान बोले,

"तथास्तु! जैसा तुमने कहा, वैसा ही हो।"
और वे वहाँ से चले गए और कुछ दूरी पर समुद्र किनारे बैठ गए।

कुछ समय बाद, वैश्य जब सुबह की नित्यकर्म से निवृत्त होकर नाव की ओर लौटा, तो उसने देखा कि उसकी नाव वास्तव में बेल के पत्तों से भरी हुई है। यह देखकर वह अचंभित रह गया और मूर्छित होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।

जब उसे होश आया, तो वह दुख और पछतावे में रोने लगा। उसका दामाद बोला,

"हे पिताजी! चिंता मत कीजिए। यह सब उस दण्डी महाराज की माया है। आइए, हम उन्हीं की शरण में चलते हैं। वही हमें इस संकट से मुक्त करेंगे।"

तब वैश्य दण्डी वेशधारी भगवान के पास गया और गहरी भक्ति से प्रार्थना करते हुए बोला:

"हे प्रभु! मुझसे जो झूठ बोलने का अपराध हुआ, कृपया क्षमा करें।"

भगवान बोले:

"हे वणिक! तूने मेरी पूजा से मुख मोड़ा, इसीलिए मैंने तुझे दुख दिया। मेरी इच्छा से ही तुझे यह सब सहना पड़ा।"

वैश्य ने कहा:

"हे प्रभु! आपकी माया को ब्रह्मा जैसे देव भी नहीं जान सकते, तो मैं मूर्ख कैसे जान सकता हूँ? अब मैं पूरी श्रद्धा से आपकी पूजा करूँगा। कृपा कर मेरी नाव को पुनः धन-धान्य से भर दें।"

वैश्य की भक्ति और पश्चाताप से भगवान प्रसन्न हुए और उसे वर देकर अदृश्य हो गए।

अब वैश्य और उसका दामाद जब नाव पर पहुँचे, तो देखा कि नाव पहले की तरह धन-धान्य से भर गई है। उन्होंने वहीं भगवान सत्यनारायण का विधिपूर्वक पूजन किया और प्रसन्न होकर अपने नगर की ओर चल दिए।

नगर के पास पहुँचते ही वैश्य ने एक दूत को घर भेजा। दूत ने जाकर लीलावती को संदेश दिया:

"आपके पति और दामाद नगर के पास आ गए हैं।"

तब लीलावती और उसकी बेटी कलावती, जो उस समय भगवान की पूजा कर रही थीं, बहुत प्रसन्न हुईं। लीलावती ने अपनी बेटी से कहा:

"बेटी! मैं दर्शन के लिए जा रही हूँ, तुम पूजा पूरी करके आ जाना।"

परंतु कलावती अधूरी पूजा और प्रसाद छोड़कर अपने पति से मिलने के लिए चल पड़ी।

भगवान सत्यनारायण इससे रुष्ट हो गए और क्रोध में आकर कलावती के पति को नाव सहित जल में डुबो दिया। कलावती जब अपने पति को न पाकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, तो साधु वैश्य ने विनम्रता से प्रार्थना की:

"हे प्रभु! हमसे यदि कोई भूल हो गई हो तो उसे क्षमा करें।"

तभी आकाशवाणी हुई:

"कलावती ने मेरा प्रसाद बिना ग्रहण किए वहाँ से चली गई, इसी कारण उसका पति अदृश्य हुआ है। यदि वह घर जाकर प्रसाद ग्रहण कर फिर लौटे, तो उसका पति उसे पुनः मिल जाएगा।"

कलावती ने यह सुनते ही घर जाकर प्रसाद ग्रहण किया और जब वह लौटी, तो उसका पति उसे पूर्ववत मिल गया। दोनों अत्यंत प्रसन्न हुए।

इसके पश्चात वैश्य ने अपने परिवार और बन्धु-बान्धवों सहित भगवान सत्यनारायण का विधिपूर्वक पूजन किया। उस पूजन से वह इस लोक में सभी सुख भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ।

॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा चतुर्थ अध्याय समाप्त ॥

श्री सत्यनारायण व्रत कथा – पाँचवाँ अध्याय

श्री सूतजी बोले:
हे मुनियों! अब मैं आप सबको एक और प्रेरणादायक कथा सुनाता हूँ। कृपया ध्यानपूर्वक सुनिए। बहुत पहले एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम था तुङ्गध्वज। वे एक धर्मपरायण शासक थे और अपनी प्रजा की भलाई के लिए हमेशा चिंतित रहते थे। लेकिन एक बार उन्होंने श्री सत्यनारायण भगवान के प्रसाद का अपमान कर दिया, जिसके कारण उन्हें भारी कष्ट सहना पड़ा। एक दिन जब राजा तुङ्गध्वज जंगल में शिकार के लिए गए, तो शिकार के बाद एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने लगे। वहाँ उन्होंने कुछ ग्वालों को श्रद्धा के साथ अपने परिवार सहित श्री सत्यनारायण व्रत करते देखा। लेकिन राजा अहंकारवश वहाँ गए नहीं और न ही भगवान को प्रणाम किया। जब ग्वालों ने श्रद्धापूर्वक भगवान का प्रसाद उन्हें भेंट किया, तब भी राजा ने वह प्रसाद नहीं लिया और अपने नगर लौट आए। नगर लौटते ही उन्होंने देखा कि उनका सारा राज्य उजड़ चुका है। वे समझ गए कि यह सब भगवान सत्यनारायण के रुष्ट हो जाने के कारण हुआ है। वे पश्चाताप करते हुए वापस जंगल लौटे और उन्हीं ग्वालों के पास पहुँचे। वहाँ उन्होंने विधिपूर्वक श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा की और श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण किया। भगवान की कृपा से उनका सारा राज्य फिर से पहले जैसा हो गया और राजा ने लंबे समय तक सुखपूर्वक राज्य किया। अंत में वे मोक्ष को प्राप्त हुए।

इस व्रत के लाभ
जो भी व्यक्ति इस शुभ और दुर्लभ व्रत को श्रद्धा और विधिपूर्वक करता है, उसे धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती। निर्धन व्यक्ति समृद्ध हो जाता है, बंधनों में फँसा व्यक्ति मुक्त हो जाता है, निःसंतान को संतान मिलती है, सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और अंत में वह बैकुंठधाम को प्राप्त करता है।

अब मैं आपको उन पुण्यात्माओं के अगले जन्मों की भी कथा बताता हूँ, जिन्होंने पूर्वजन्म में यह व्रत किया था:

  • शतानंद ब्राह्मण अगले जन्म में सुदामा बने और श्रीकृष्ण की भक्ति कर बैकुंठ को प्राप्त हुए।
  • राजा उल्कामुख अगले जन्म में राजा दशरथ बने और भगवान रंगनाथ की उपासना कर मोक्ष को प्राप्त हुए।
  • साधु वैश्य अगले जन्म में राजा मोरध्वज बने, जिन्होंने अपने पुत्र को आरे से चीर कर सत्य की परीक्षा दी और बैकुंठ गए।
  • राजा तुङ्गध्वज स्वयं अगले जन्म में स्वायंभुव मनु बने और उन्होंने असंख्य लोगों को ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित कर बैकुंठधाम पाया।
  • लकड़हारा अगले जन्म में गुह निषादराज बने, जिन्होंने भगवान श्रीराम की सेवा कर अपने सारे जन्मों का उद्धार कर लिया।

॥ इस प्रकार श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पञ्चम अध्याय पूर्ण हुआ ॥

Styanarayan Katha pooja vidhi - 

श्री सत्यनारायण व्रत पूजा एक सरल और शुभ विधि है जो भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की उपासना के लिए की जाती है। इस पूजा में सर्वप्रथम संकल्प लिया जाता है, फिर कलश स्थापना करके भगवान का आवाहन किया जाता है। इसके बाद भगवान सत्यनारायण को षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है, जिसमें जल, आसन, वस्त्र, पुष्प, चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजा के पश्चात श्री सत्यनारायण की पाँच अध्यायों की कथा श्रद्धा से पढ़ी या सुनी जाती है, जिसमें धर्म, भक्ति और सत्य की महिमा का वर्णन है। कथा के बाद आरती की जाती है और अंत में प्रसाद वितरित कर पूजा का समापन किया जाता है। यह पूजा घर में सुख, समृद्धि, संतान, शांति और मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है।

Shri Satyanarayan Puja is a simple and sacred ritual dedicated to Lord Vishnu in His truthful form. It begins with a vow (sankalp), followed by Kalash Sthapana and invocation of the deity. The Lord is worshipped with 16 traditional offerings (shodashopachar) including water, seat, clothes, sandal paste, flowers, incense, lamp, and food. After the ritual, the five-chapter story of Lord Satyanarayan is read or heard, highlighting the power of truth, devotion, and dharma. The puja concludes with an aarti and distribution of prasad. This puja is believed to bring peace, prosperity, children, happiness, and ultimately liberation to the devotee.

1. ध्यानम् (Dhyānam – Meditation)

मन्त्र:

ध्यायेत् सत्यं गुणातीतं गुणत्रयसमन्वितम्।

लोकनाथं त्रिलोकेशं कौस्तुभाभरणं हरिम्॥

नीलवर्णं पीतवस्त्रं श्रीवत्सपदभूषितम्।

गोविन्दं गोकुलानन्दं ब्रह्माद्यैरपि पूजितम्॥

हिंदी अर्थ:
भगवान सत्यनारायण का ध्यान करें, जो समस्त गुणों से परे हैं किंतु तीनों गुणों में भी स्थित हैं। वे तीनों लोकों के स्वामी हैं, उनके वक्ष पर कौस्तुभ मणि सुशोभित है। उनका रंग नील है, पीले वस्त्र धारण किए हैं और श्रीवत्स चिन्ह से विभूषित हैं। वे गोविंद हैं, गोकुल को आनंद देने वाले हैं और ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा पूजित हैं।

English Meaning:
Meditate upon Lord Satyanarayan, who transcends all qualities yet embodies the three gunas. He is the Lord of all worlds, adorned with the Kaustubha gem. His complexion is dark blue, he wears yellow garments, and bears the Shri Vatsa mark. He is Govinda, the joy of Gokula, worshipped by Brahma and other gods.

2. आवाहनम् (Āvāhanam – Invocation)

मन्त्र:

दामोदर समागच्छ लक्ष्म्या सह जगत्पते।

इमां मया कृतां पूजां गृहाण सुरसत्तम॥

ॐ श्रीलक्ष्मी-सहित-श्रीसत्यनारायणम् आवाहयामि।

हिंदी अर्थ:
हे दामोदर! लक्ष्मीजी के साथ पधारिये। हे जगत के स्वामी! मैंने जो यह पूजा की है, उसे स्वीकार कीजिए। हे श्रेष्ठ देव! मैं श्री लक्ष्मी-सहित श्री सत्यनारायण भगवान का आवाहन करता हूँ।

English Meaning:
O Damodara! Please arrive along with Goddess Lakshmi. O Lord of the Universe, kindly accept the worship I have offered. I invoke Shri Satyanarayan along with Goddess Lakshmi.

3. आसनम् (Āsanam – Offering a Seat)

मन्त्र:

नानारत्नसमाकीर्णं कार्तस्वरविभूषितम्।

आसनं देवदेवेश! प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः आसनं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे देवों के देव! बहुमूल्य रत्नों से जड़े हुए तथा स्वर्ण से अलंकृत आसन को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कीजिए। मैं यह आसन श्री सत्यनारायण भगवान को अर्पित करता हूँ।

English Meaning:
O Lord of Lords! Please graciously accept this seat, adorned with various precious gems and gold. I offer this seat to Lord Satyanarayan.

4. पाद्यम् (Pādyam – Offering Water for Feet Wash)

मन्त्र:

नारायणः नमस्तेऽस्तु नरकार्णवतारक।

पाद्यं गृहाण देवेश! मम सौख्यं विवर्धय॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे नारायण! आपको नमस्कार है। आप नररूपी संसार-सागर से तारने वाले हैं। हे देवों के स्वामी! कृपया इस पाद्य को स्वीकार करें और मुझे सुख प्रदान करें।

English Meaning:
O Narayana! My salutations to You. You are the deliverer from the ocean of worldly existence. O Lord of the gods, kindly accept this water for washing Your feet and bless me with happiness.

5. अर्घ्यम् (Arghyam – Offering Water with Fragrance and Respect)

मन्त्र:

व्यक्ताव्यक्तस्वरूपाय हृषीकपतये नमः।

मया निवेदितो भक्त्या अर्घ्योऽयं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे व्यक्त और अव्यक्त रूप वाले, इन्द्रियों के स्वामी! आपको नमस्कार है। मैं भक्ति सहित यह अर्घ्य अर्पित करता हूँ, कृपया इसे स्वीकार करें।

English Meaning:
Salutations to You, the one who embodies both the manifest and unmanifest forms, Lord of the senses. I offer this arghya with devotion—please accept it graciously.

6. आचमनीयम् (Ācamaniyam – Offering Water for Sipping)

मन्त्र:

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।

तदिदं कल्पितं देव सम्यगाचम्यतां विभो॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः आचमनीयं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
मन्दाकिनी नदी का जो पवित्र एवं समस्त पापों को नष्ट करने वाला जल है, वही मैंने आपको आचमन के लिए अर्पित किया है। हे प्रभु! कृपया इसे स्वीकार करें।

English Meaning:
The water brought from the sacred Mandakini River, which removes all sins, I offer it to You for sipping, O Lord—kindly accept it.

7. पञ्चामृत स्नानम् (Panchāmrita Snānam – Bathing with Five Sacred Substances)

मन्त्र:

स्नानं पञ्चामृतैर्देव गृहाण सुरसत्तम।

अनाथनाथसर्वज्ञ गीर्वाणप्रणतप्रिय॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे श्रेष्ठ देव! हे सर्वज्ञ! हे अनाथों के नाथ! हे देवताओं द्वारा पूज्य! कृपया पञ्चामृत (दूध, दही, घी, शहद व शर्करा) से यह स्नान ग्रहण करें।

English Meaning:
O Supreme Deity, Omniscient, and Lord of the helpless, beloved of the celestials! Kindly accept this sacred bath offered with Panchamrit—milk, curd, ghee, honey, and sugar.

8. शुद्धोदक स्नानम् (Shuddhodaka Snānam – Bathing with Pure Water)

मन्त्र:

नानातीर्थसमानीतं सर्वपापहरं शुभम्।

तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
अनेक तीर्थों से संकलित यह पवित्र और पापों को नष्ट करने वाला जल मैंने आपके स्नान के लिए अर्पित किया है। हे देव! कृपया इसे स्वीकार करें।

English Meaning:
This pure and sacred water, collected from many holy rivers and capable of removing all sins, is offered for Your bath. O Lord, kindly accept it.

9. वस्त्र (Vastra – Offering New Clothes)

मन्त्र:

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायाः रक्षणं परम्।

देहालङ्करणं वस्त्रं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
यह वस्त्र शीत, गर्मी और वायु से रक्षा करता है, लज्जा का रक्षक है तथा शरीर की शोभा बढ़ाता है। हे प्रभु! कृपा कर इसे स्वीकार करें।

English Meaning:
These clothes protect from cold, heat, and wind, preserve modesty, and adorn the body. O Lord Satyanarayana, please accept them lovingly.

10. यज्ञोपवीतम् (Yajñopavītam – Offering the Sacred Thread)

मन्त्र:

ब्रह्माविष्णुमहेशेन निर्मितं सूत्रमुत्तमम्।

गृहाण भगवन् विष्णो सर्वेष्टफलदो भव॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
यह उत्तम यज्ञोपवीत ब्रह्मा, विष्णु और महेश के द्वारा निर्मित है। हे भगवन् विष्णु! इसे स्वीकार करें और मुझे सभी शुभ फलों का दाता बनें।

English Meaning:
This sacred thread has been sanctified by Brahma, Vishnu, and Mahesh. O Lord Vishnu! Kindly accept it and bestow all auspicious results upon me.




11. चन्दनम् (Chandanam – Offering Sandal Paste)

मन्त्र:

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।

विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः चन्दनं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
यह दिव्य चन्दन सुगंध से परिपूर्ण और अत्यन्त मनोहर है। हे श्रेष्ठ देव! कृपा करके इस चन्दन को स्वीकार करें।

English Meaning:
This divine sandal paste is rich in fragrance and extremely pleasing. O Supreme Deity, kindly accept this offering of sandal paste.

12. पुष्पाणि (Pushpāṇi – Offering Flowers)

मन्त्र:

सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।

मया हृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः पुष्पाणि समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे प्रभो! मैंने मालती आदि सुगंधित पुष्प पूजा हेतु आपके लिए लाए हैं। कृपा कर इन्हें स्वीकार करें।

English Meaning:
O Lord! I have brought fragrant flowers like Mālatī for Your worship. Kindly accept them with grace.

13. धूपः (Dhūpah – Offering Incense)

मन्त्र:

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।

आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः धूपम् आघ्रापयामि।

हिंदी अर्थ:
वनस्पति रस से उत्पन्न यह उत्तम सुगंध वाला धूप सभी देवताओं द्वारा सुगंध लेने योग्य है। कृपया इसे स्वीकार करें।

English Meaning:
This incense, derived from the essence of plants, is rich in fragrance and fit for all gods to inhale. O Satyanarayana, please accept it.

14. दीपः (Dīpah – Offering Lamp)

मन्त्र:

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना दीपितं मया।

दीपं गृहाण देवेश मम सौख्यप्रदो भव॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः दीपं दर्शयामि।

हिंदी अर्थ:
शुद्ध घी और बाती से युक्त, अग्नि द्वारा प्रज्वलित यह दीप मैंने आपको अर्पित किया है। हे देवेश! इसे स्वीकार करें और मुझे सुख प्रदान करें।

English Meaning:
This lamp, lit with clarified butter and wick, has been kindled and offered by me. O Lord of Lords, accept it and bless me with happiness.

15. नैवेद्यम् (Naivedyam – Offering Food)

मन्त्र:

घृतपक्वं हविष्यान्नं पायसं च सशर्करम्।

नानाविधं च नैवेद्यं गृह्णीष्व सुरसत्तम॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि।

हिंदी अर्थ:
घी से पकाया हुआ हविष्य अन्न, शक्करयुक्त पायस (खीर) एवं विविध प्रकार के नैवेद्य मैंने आपको अर्पित किए हैं। हे श्रेष्ठ देव! कृपा कर इन्हें स्वीकार करें।

English Meaning:
O Best among Gods! I offer you food prepared with ghee, sweetened rice pudding (kheer), and various delicacies. Please accept my humble offering.

16. ताम्बूलम् (Tāmbūlam – Offering Betel Leaves & Nuts)

मन्त्र:

लवङ्गकर्पूरसंयुक्तं ताम्बूलं सुरपूजितम्।

एलादिचूर्णसंयुक्तं प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे प्रभो! यह ताम्बूल (पान-सुपारी) लौंग, कपूर और अन्य सुगंधित चूर्णों से युक्त है। कृपा करके इसे प्रसन्नता से स्वीकार करें।

English Meaning:
O Lord! This betel offering is blended with clove, camphor, and fragrant powders. Kindly accept it with delight.

17. फलम् (Phalam – Offering Fruits)

मन्त्र:

इदं फलं मया देव! स्थापितं पुरतस्तव।

तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः फलं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे प्रभु! यह फल मैंने आपके समक्ष अर्पित किया है। कृपया इसे स्वीकार करें और मेरे प्रत्येक जन्म को सफल बनायें।

English Meaning:
O Lord! This fruit is offered before You with devotion. May its offering bring fulfillment in this and every future birth.

18. आरार्तिक्यम् (Ārārtikyam – Aarti)

मन्त्र:

चतुर्वर्तिसमायुक्तं गोघृतेन च पूरितम्।

आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः मङ्गल-आरार्तिक्यं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
चार बातियों एवं शुद्ध घी से युक्त यह आरती मैं कर रहा हूँ। हे वरद! कृपया दर्शन देकर मुझे आशीर्वाद दें।

English Meaning:
I perform this auspicious aarti with four wicks soaked in pure ghee. O Giver of Boons! Please bless me with Your divine vision.

19. प्रदक्षिणा (Pradakṣiṇā – Circumambulation)

मन्त्र:

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि तानि विनश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
पूर्व जन्मों में किए गए जो भी पाप हैं, वे मेरी प्रत्येक प्रदक्षिणा के साथ नष्ट हों। हे भगवान! मैं यह परिक्रमा आपको अर्पित करता हूँ।

English Meaning:
May all sins committed in past births be destroyed with each step of this circumambulation. I offer this symbolic pradakshina at Your feet.

20. मन्त्रपुष्पाञ्जलिः (Mantra-Puṣpāñjali – Final Offering of Flowers with Mantras)

मन्त्र:

यन्मया भक्तियुक्तेन पत्रं पुष्पं फलं जलम्।

निवेदितं च नैवेद्यं तद्गृहाणानुकम्पया॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।

यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥

अनया पूजया श्रीविष्णुः प्रसीदतु॥

ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।

हिंदी अर्थ:
हे जनार्दन! मैंने जो पत्र, पुष्प, फल, जल एवं नैवेद्य भक्तिपूर्वक अर्पित किया है, उसे कृपा करके स्वीकार करें। यदि इस पूजा में कोई मंत्र, क्रिया या भक्ति की कमी रह गई हो तो भी कृपा कर इसे पूर्ण मानें। इस पूजा से भगवान विष्णु प्रसन्न हों।

English Meaning:
O Janardana! Whatever leaves, flowers, fruits, water, and offerings I have made with devotion – please accept them compassionately. If there is any deficiency in mantra, action, or devotion, still kindly accept my worship as complete. May Lord Vishnu be pleased with this humble offering.

ॐ शान्ति । ॐ शान्ति । ॐ शान्ति । 

 ॥ आरती श्री सत्यनारायणजी ॥


जय लक्ष्मीरमणा श्री जय लक्ष्मीरमणा।
सत्यनारायण स्वामी जनपातक हरणा॥

रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे॥

प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो॥

दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी॥

वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी॥

भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धर्यो।
श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सर्यो॥

ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीनो दीनदयाल हरी॥

चढ़त प्रसाद सवाया कदली फल मेवा।
धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा॥

श्री सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥

भावार्थ 

 जय लक्ष्मी रमण: हे लक्ष्मी के प्रिय भगवान सत्यनारायण! आपकी जय हो। आप ही पापों का नाश करने वाले हैं।

 रत्नजड़ित सिंहासन: आप रत्नों से जड़े सिंहासन पर विराजमान हैं। आपकी छवि अत्यंत दिव्य है। नारद जी घंटा बजाकर आरती करते हैं।

 कलियुग में प्रकट: कलियुग में आप एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर एक द्विज (ब्राह्मण) को दर्शन देते हैं और उसे सोने का महल प्रदान करते हैं।

 भील और राजा पर कृपा: आपने कमजोर भील और राजा चंद्रचूड़ पर कृपा की और उनकी सभी विपत्तियों को हर लिया।

 वैश्य की इच्छा पूर्ण: एक वैश्य ने पहले श्रद्धा त्याग दी, फिर आपके प्रति श्रद्धा दिखाई, जिससे उसकी मनोकामना पूर्ण हुई।

 भाव भक्ति के कारण: जो भक्त भाव और भक्ति से पूजा करते हैं, उनके हर रूप में दर्शन देते हैं और उनके कार्य सिद्ध करते हैं।

 राजा और ग्वाल-बाल: जब एक राजा अपने बालकों के साथ वन में आपकी भक्ति करता है, तो आप उसे मनवांछित फल देते हैं।

 प्रसाद और भक्ति: जब केला, मेवे आदि का प्रसाद और तुलसी, धूप, दीप से पूजा की जाती है, तब आप अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

 आरती का फल: जो भी भक्त यह आरती श्रद्धा से गाता है, वह शिवानंद स्वामी के वचनानुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति पाता है।

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