विनियोग : ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्ध देवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥
॥ ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥
Om yad guhyam paramam loke sarvarakṣākaraṁ nṛṇām |
Yan na kasyachidākhyātaṁ tan me brūhi pitāmaha ||1||
हिंदी अर्थ
हे पितामह! जो परम गुह्य है एवं संसारों की रक्षा करने वाला—वह कृपया मुझे बताइए।
ब्रह्मोवाच अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥
Brahmo vāca asti guhyatamaṁ vipra sarvabhūtopakārakam |
Devī astu kavacaṁ puṇyaṁ tac chṛṇuṣva mahāmune ||2||
हिंदी अर्थ
ब्रह्मा बोले—हे महायोगी! यह कवच सर्वभूतहित-प्रद है, अत्यन्त गुप्त पुण्य है—ओ देवी, इसे सुनिए।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥३॥
Prathamaṁ Śailaputrī ca dvitīyaṁ Brahmacāriṇī |
Tṛtīyaṁ Candraghaṇṭeti Kūṣmāṇḍeti caturthakam ||3||
हिंदी अर्थ
प्रथम शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तृतीय चन्द्रघण्टा, चतुर्थ कूष्माण्डा—ये चार माँ हैं।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्र्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥
Pañcamaṁ Skandamāte iti ṣaṣṭhaṁ Kātyāyanīti ca |
Saptamaṁ Kālarātrīti mahāgaurīti cāṣṭamam ||4||
हिंदी अर्थ
पाँचवीं स्कन्दमाता, छठवीं कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥
Navamaṁ Siddhidātrī ca navadurgāḥ prakīrtitāḥ |
Uktany etāni nāmāni Brahmaṇai eva mahātmanā ||5||
हिंदी अर्थ
नवीं सिद्धिदात्री, ये कुल नौ द्रुर्गा (देवियाँ) हैं—ये नाम ब्रह्मा महात्मा द्वारा प्रतिष्ठित किए गए।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥
Agninā dahyamānastu śatrumadhye gato raṇe |
Viṣame durgame caiva bhayārtāḥ śaraṇaṁ gatāḥ ||6||
हिंदी अर्थ
जो अग्नि में जल रहे या युद्ध में शत्रु बीच हों, या भय से त्रस्त हों—वे सब इस कवच के शरणागत होकर सुरक्षित रहते हैं।
न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥
Na teṣāṁ jāyate kiñcid aśubhaṁ raṇa-saṅkaṭe |
Nāpadam tasya paśyāmi śoka-duḥkha-bhayaṁ na hi ||7||
हिंदी अर्थ
उनके साथ कोई भी दोष नहीं—न रण-संकट, न दु:ख, न भय—इन सब से ये कवच मुक्त करता है।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥
Yaistu bhaktyā smṛtā nūnaṁ teṣāṁ vṛddhiḥ prajāyate |
Ye tvāṁ smaranti deveśi rakṣase tān na saṁśayaḥ ||8||
हिंदी अर्थ
जो लोग भक्तिभाव से तेरा नाम स्मरण करते हैं—उनमें निश्चिततया वृद्धि होती है। हे देवी! जो तुम्हें स्मरते हैं, उन्हें संरक्षण दो—इसमें कोई संदेह नहीं।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥
Preta-saṁsthā tu Cāmuṇḍā Vārāhī mahiṣāsanā |
Aindrī gaja-samārūḍhā Vaiṣṇavī garuḍāsanā ||9||
हिंदी अर्थ
चामुण्डा—प्रेतों के बीच, वाराही—महिषा वाहन पर, ऐन्द्री—हाथी सवारी, वैष्णवी—गरुड़ारोहिणी।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥
Māheśvarī vṛṣārūḍhā Kaumarī śikhivāhanā |
Lakṣmīḥ padmāsanā Devī padmahastā Haripriyā ||10||
हिंदी अर्थ
माहेश्वरी—वृषभ सवार, कौमारी—शिखा पर सवारी, लक्ष्मी—कमलासन, हाथ में कमल, प्रिय है हरि को।
श्वेतरुपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥
Śvetarūpadharā Devī Īśvarī vṛṣavāhanā |
Brāhmī haṁsasamārūḍhā sarvābharaṇabhūṣitā ||11||
भावार्थ
श्वेत रूपवाली ईश्वरी देवी वृषभ पर सवारी करती हैं। ब्राह्मी देवी हंस पर आरूढ़ हैं और समस्त आभूषणों से सुशोभित हैं।
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥
Ityetā mātaraḥ sarvāḥ sarva-yoga-samanvitāḥ |
Nānābharaṇa-śobhāḍhyā nānā-ratnopaśobhitāḥ ||12||
भावार्थ
ये सभी माताएं योग की सम्पूर्ण शक्तियों से युक्त हैं, भिन्न-भिन्न आभूषणों और रत्नों से सुशोभित हैं।
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥
Dṛśyante rathamārūḍhā devyaḥ krodhasamākulāḥ |
Śaṅkhaṁ cakraṁ gadāṁ śaktiṁ halaṁ ca musalāyudham ||13||
भावार्थ
देवियाँ क्रोध से पूर्ण होकर रथों पर सवार दिखाई देती हैं, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल जैसे अस्त्र हैं।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥
Kheṭakaṁ tomaraṁ caiva paraśuṁ pāśam eva ca |
Kuntāyudhaṁ triśūlaṁ ca śārṅgamāyudham uttamam ||14||
भावार्थ
वे देवियाँ खेटक (ढाल), तोमर (भाला), परशु (कुल्हाड़ी), पाश (रस्सी), कुण्ट (बरछी), त्रिशूल और उत्तम धनुष जैसे आयुधों को धारण करती हैं।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥
Daityānāṁ dehanāśāya bhaktānām abhayāya ca |
Dhārayantyāyudhānītthaṁ devānāṁ ca hitāya vai ||15||
भावार्थ
ये देवियाँ असुरों के विनाश, भक्तों की रक्षा और देवताओं के कल्याण हेतु ये अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥
Namaste’stu mahāraudre mahāghora-parākrame |
Mahābale mahotsāhe mahābhaya-vināśini ||16||
भावार्थ
हे अत्यंत रौद्र रूपधारी, प्रचंड पराक्रमी, असीम बलशाली, महान उत्साही और भयानक भय का नाश करने वाली देवी! आपको नमस्कार है।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥
Trāhi māṁ devi duṣprekṣye śatrūṇāṁ bhaya-vardhini |
Prācyāṁ rakṣatu māmaindrī āgneyyām agnidevatā ||17||
भावार्थ
हे देवि! जो शत्रुओं के लिए भीषण भयदायिनी हैं, मेरी रक्षा कीजिए। पूर्व दिशा में मेरी रक्षा ऐन्द्री देवी करें, और आग्नेय दिशा में अग्निदेवता।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥
Dakṣiṇe’vatu Vārāhī Nairṛtyāṁ khaḍgadhāriṇī |
Pratīcyāṁ Vāruṇī rakṣed vāyavyāṁ mṛgavāhinī ||18||
भावार्थ
दक्षिण दिशा में वाराही देवी रक्षा करें, नैऋत्य कोण में खड्गधारिणी देवी, पश्चिम में वारुणी और वायव्य कोण में मृगवाहिनी रक्षा करें।
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥
Udīcyāṁ pātu Kaumarī aiśānyāṁ śūladhāriṇī |
Ūrdhvaṁ Brahmāṇi me rakṣed adhaḥtād Vaiṣṇavī tathā ||19||
भावार्थ
उत्तर दिशा में कौमारी देवी, ईशान कोण में शूलधारिणी देवी, ऊपर की दिशा में ब्रह्माणी और नीचे की दिशा में वैष्णवी मेरी रक्षा करें।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥
Evaṁ daśa diśo rakṣec Cāmuṇḍā śavavāhanā |
Jayā me cāgrataḥ pātu Vijayā pātu pṛṣṭhataḥ ||20||
भावार्थ
इस प्रकार दसों दिशाओं की रक्षा शववाहना चामुण्डा देवी करें। मेरे आगे जयादेवी और पीछे विजयादेवी रक्षा करें।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥
Ajitā vāmapārśve tu dakṣiṇe cāparājitā |
Śikhāmudyotinī rakṣed umā mūrdhni vyavasthitā ||21||
भावार्थ
मेरे बाएँ भाग की रक्षा अजिता देवी करें, दाएँ भाग की अपराजिता, शिखा की रक्षा उद्योतिनी देवी करें और मस्तक पर उमा देवी स्थित होकर रक्षा करें।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद्यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥
Mālādharī lalāṭe ca bhruvau rakṣed yaśasvinī |
Trinetra ca bhruvor madhye yamaghaṇṭā ca nāsike ||22||
भावार्थ
मालाधरी देवी ललाट की, यशस्विनी भ्रुओं की, त्रिनेत्रा बीच में और यमघण्टा देवी नासिका की रक्षा करें।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शाङ्करी॥२३॥
Śaṅkhinī cakṣuṣor madhye śrotrayor dvāravāsinī |
Kapolau kālikā rakṣet karṇamūle tu Śāṅkarī ||23||
भावार्थ
शंखिनी देवी नेत्रों के बीच, द्वारवासिनी कानों के द्वारों की, कालिका कपोलों की और शाङ्करी देवी कान के मूल भाग की रक्षा करें।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥
Nāsikāyāṁ sugandhā ca uttarosthe ca Carcikā |
Adhare cāmṛtakalā jihvāyāṁ ca Sarasvatī ||24||
भावार्थ
सुगंधा देवी नासिका की, चर्चिका ऊपरी होंठ की, अमृतकला निचले होंठ की और सरस्वती जीभ की रक्षा करें।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥२५॥
Dantān rakṣatu Kaumarī kaṇṭhadeśe tu Caṇḍikā |
Ghaṇṭikāṁ Citraghaṇṭā ca Mahāmāyā ca tāluke ||25||
भावार्थ
कौमारी दाँतों की, चण्डिका कंठ की, चित्रघण्टा घंटिका (गले की घंटी) की और महामाया तालु (तालु यानी मुंह की छत) की रक्षा करें।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥
Kāmākṣī cibukaṁ rakṣed vācaṁ me Sarvamaṅgalā |
Grīvāyāṁ Bhadrakālī ca pṛṣṭhavaṁśe Dhanurdharī ||26||
भावार्थ
कामाक्षी चिबुक (ठोड़ी) की रक्षा करें, सर्वमङ्गला वाणी की, भद्रकाली ग्रीवा (गर्दन) की और धनुर्धरी देवी पृष्ठवंश (रीढ़) की रक्षा करें।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद्बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥
Nīlagrīvā bahiḥkaṇṭhe nalikāṁ Nalakūbarī |
Skandhayoḥ Khaṅginī rakṣed bāhū me Vajradhāriṇī ||27||
भावार्थ
नीलग्रीवा बाहरी कंठ की, नलकूबरी कंठ की नलिकाओं की रक्षा करें, स्कंध (कंधों) की रक्षा खड्गिनी और भुजाओं की रक्षा वज्रधारिणी करें।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥२८॥
Hastayor Daṇḍinī rakṣed Ambikā cāṅgulīṣu ca |
Nakhāñ Chūleśvarī rakṣet kukṣau rakṣet Kuleśvarī ||28||
भावार्थ
दण्डिनी देवी हाथों की, अंबिका उंगलियों की, शूलेश्वरी नाखूनों की और कुलेश्वरी पेट (कुक्षि) की रक्षा करें।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥
Stanau rakṣen Mahādevī manaḥ śoka-vināśinī |
Hṛdaye Lalitā Devī udare Śūladhāriṇī ||29||
भावार्थ
महादेवी स्तनों की, शोकविनाशिनी मन की, ललिता देवी हृदय की और शूलधारिणी उदर (पेट) की रक्षा करें।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥३०॥
Nābhau ca Kāminī rakṣed guhyaṁ Guhyeśvarī tathā |
Pūtanā Kāmikā meḍhraṁ gude Mahiṣavāhinī ||30||
भावार्थ
कामिनी देवी नाभि की, गुह्येश्वरी गुप्तांगों की, पूतना एवं कामिका मेढ्र (जननेन्द्रिय) की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥
Kaṭyāṁ Bhagavatī rakṣej jānunī Vindhyavāsinī |
Jaṅghe Mahābalā rakṣet sarva-kāma-pradāyinī ||31||
भावार्थ
भगवती कटि (कमर) की, विन्ध्यवासिनी घुटनों की, और महाबला देवी जंघाओं (जांघों) की रक्षा करें, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥
Gulphayor Nārasiṁhī ca pādapṛṣṭhe tu Taijasī |
Pādāṅgulīṣu Śrī rakṣet pādādha-stala-vāsinī ||32||
भावार्थ
नरसिंही टखनों की, तैजसी पैरों की पीठ (ऊपरी भाग) की रक्षा करें, श्रीदेवी पैरों की उंगलियों की और पादाधस्तलवासिनी तलवों की रक्षा करें।
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥३३॥
Nakhān daṁṣṭrā-karālī ca keśāṁś caivordhva-keśinī |
Romakūpeṣu Kauberī tvacaṁ Vāgīśvarī tathā ||33||
भावार्थ
दंष्ट्राकराली नखों की, उर्ध्वकेशिनी केशों की, कौबेरी रोमकूपों की और वागीश्वरी त्वचा की रक्षा करें।
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥३४॥
Rakta-majjā-vasā-māṁsānya-sthi-medāṁsi Pārvatī |
Antarāṇi Kālarātriś ca pittaṁ ca Mukuṭeśvarī ||34||
भावार्थ
पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, माँस, अस्थि और मेद की रक्षा करें। कालरात्रि अंतरांगों की और मुकुटेश्वरी पित्त की रक्षा करें।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥
Padmāvatī padmakośe kaphe Cūḍāmaṇis tathā |
Jvālāmukhī nakhajvālām abhedyā sarva-sandhiṣu ||35||
भावार्थ
पद्मावती देवी कमल जैसे हृदय की, चूडामणि कफ की, ज्वालामुखी नखज्वाला की और अभेद्या देवी सभी जोड़ों की रक्षा करें।
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥
Śukraṁ Brahmāṇi me rakṣec chāyāṁ Chatreśvarī tathā |
Ahaṅkāraṁ mano buddhiṁ rakṣen me Dharmadhāriṇī ||36||
भावार्थ
ब्रह्माणी शुक्र की, छत्रेश्वरी छाया की, और धर्मधारिणी देवी अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥
Prāṇāpānau tathā vyānamudānaṁ ca samānakam |
Vajrahastā ca me rakṣet prāṇaṁ kalyāṇaśobhanā ||37||
भावार्थ
वज्रहस्ता देवी प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान आदि वायुओं की और सम्पूर्ण जीवन शक्ति की रक्षा करें। वे कल्याणकारी और सुंदर हैं।
रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥
Rase rūpe ca gandhe ca śabde sparśe ca Yoginī |
Sattvaṁ rajas tamaś caiva rakṣen Nārāyaṇī sadā ||38||
भावार्थ
योगिनी देवी रस, रूप, गंध, शब्द और स्पर्श की रक्षा करें तथा नारायणी सदा सत्त्व, रज और तम – तीनों गुणों की रक्षा करें।
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥
Āyū rakṣatu Vārāhī dharmaṁ rakṣatu Vaiṣṇavī |
Yaśaḥ kīrtiṁ ca lakṣmīṁ ca dhanaṁ vidyāṁ ca Cakriṇī ||39||
भावार्थ
वाराही देवी आयु की, वैष्णवी धर्म की, चक्रिणी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन और विद्या की रक्षा करें।
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥
Gotram Indrāṇi me rakṣet paśūn me rakṣa Caṇḍike |
Putrān rakṣen Mahālakṣmīḥ bhāryāṁ rakṣatu Bhairavī ||40||
भावार्थ
इंद्राणी देवी गोत्र की, चण्डिका पशुओं की, महालक्ष्मी पुत्रों की और भैरवी पत्नी की रक्षा करें।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥
Panthānaṁ supathā rakṣen mārgaṁ kṣemakarī tathā |
Rājadvāre Mahālakṣmīrvijayā sarvataḥ sthitā ||41||
भावार्थ
हे देवी! सुपथ (सही मार्ग) की रक्षा करें, मार्ग को सुरक्षित वाहक बनाएं। महालक्ष्मी राज-द्वार (सफलता के प्रवेश द्वार) पर और विजय देवी चारों ओर रक्षा करें।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥
Rakṣāhīnaṁ tu yatsthānaṁ varjitam kavacen tu |
Tatsarvaṁ rakṣa me devi Jayantī pāpanāśinī ||42||
भावार्थ
जो स्थान (जिस क्षेत्र) में रक्षा नहीं होती, उसे इस कवच द्वारा संपूर्ण रूप से बचाओ हे देवी! जयन्ती देवी, जो पापनाशिनी हैं।
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४३॥
Padamekaṁ na gacchettu yad īccheçhubhaṁ ātmanaḥ |
Kavacenāvṛto nityaṁ yatra yatraiva gacchati ||43||
भावार्थ
जो कवच पहनकर चलता है, वह भ्रमण करता हुआ भी एक भी पग बिना शुभ हो बिताये नहीं—हर कदम पर रक्षा में रहता है।
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥
Tatra tratrārtha-lābhaś ca vijayaḥ sarvākāmikaḥ |
Yaṁ yaṁ cintayate kāmaṁ taṁ taṁ prāpnoti niścitām |
Parameśvaryam atulam prāpsyate bhūtale pumān ||44||
भावार्थ
हर स्थान पर लक्ष्यों की पूर्ति और विजय मिलेगी, जो कुछ मन में चाहे वह पक्का प्राप्त होगा—और इस संसार में परम ईश्वरता की प्राप्ति होगी।
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥
Nirbhayo jāyate martyaḥ saṅgrāmeṣv aparājitaḥ |
Trailokye tu bhavet pūjyaḥ kavacenāvṛto pumān ||45||
भावार्थ
मनुष्य युद्ध में भी भयहीन होता है और अजेय बनता है; तीनों लोकों में पूजनीय होता है, जब कवच से संरक्षित होता है।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥
Idaṁ tu devyāḥ kavacaṁ devānām api durlabham |
Yaḥ paṭhet prayato nityaṁ trisandhyaṁ śraddhayānvitaḥ ||46||
भावार्थ
हे देवी! यह कवच देवी का है और देवताओं को भी दुर्लभ है। जो श्रद्धा से चित्त बाँधकर प्रतिदिन त्रिसंध्या पाठ करता है, वह।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद्वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥४७॥
Daivī kalā bhavet tasya trailokyeṣv aparājitaḥ |
Jīved varṣa-śataṁ sāgram apamṛtyu-vivarjitaḥ ||47||
भावार्थ
उसका कल्याण दिव्य बन जाए—वह तीनों लोकों में अजेय हो, शताब्दि जीवित रहे और उसे मृत्यु का स्पर्श भी न हो।
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥
Naśyanti vyādhayaḥ sarve lūtā-visphoṭakād ayaḥ |
Sthāvaraṁ jaṅgamaṁ caiva kṛtrimaṁ cāpi yad viṣam ||48||
भावार्थ
उसे कोई रोग नहीं होता—चाहे लूटा जाए, विष दिया जाए, स्थावर हो या जीव, कृत्रिम हो—सभी बाधा नष्ट हो जाती हैं।
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥४९॥
Abhicārāṇi sarvāṇi mantrayāntrāṇi bhūtlē |
Bhūcarāḥ khēcarāś caiva jalajāś copadēśikāḥ ||49||
भावार्थ
उस पर कोई दुष्ट प्रेत-टॉनिक्स, मंत्र यंत्र, आदमी, जानवर, पक्षीं या जल-जीवन कोई भी प्रभाव नहीं कर सकता।
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥५०॥
Sahajā kulajā mālā dākinī śākinī tathā |
Antarikṣacarā ghorā dākinyaś cha mahābalāḥ ||50||
भावार्थ
स्वयंभू, कुटुंबोत्पन्न, माला, डाकिनी, शाकिनी, अंतरिक्ष-संस्थानियों, गोराओं, डाकिन्याओं एवं महा-बलों का उस पर कोई असर नहीं होता।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥
Grahabhūta-piśācāś cha yakṣa-gandharva-rākṣasāḥ |
Brahmarākṣasa-vetālāḥ kūṣmāṇḍā bhairavādayaḥ ||51||
भावार्थ
ग्रह-भूत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, राक्षस—ब्रह्मराक्षस, वेटाल, कूष्माण्डा, भैरव आदि राक्षसों का उस व्यक्ति पर कोई असर नहीं होता।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद्-राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥
Naśyanti darśanāt tasya kavace hṛdi saṁsthite |
Mānonnatiḥ bhaved-rājñas tejō-vṛddhikaraṁ param ||52||
भावार्थ
जिसके हृदय में यह कवच प्रतिष्ठित है—उसमें किसी भी निम्न दृष्टि का प्रभाव नहीं होता, उसका मान बढ़ता है और वह तेजस्वी बनता है।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥
Yaśasā vardhate so’pi kīrti-maṇḍita-bhūṭale |
Japet saptashatīṁ caṇḍīṁ kṛtvā tu kavacaṁ purā ||53||
भावार्थ
वह व्यक्ति यश से समृद्ध होता है—जो पूर्व में सप्तशती चण्डी का जाप कर कवच का पाठ करता है, वह कीर्ति-भूषण बनता है।
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥
Yāvad bhūmaṇḍalaṁ dhatte saśaila-vanakānanaṁ |
Tāvattiṣṭhati medinyāṁ santatiḥ putra-pautrikī ||54||
भावार्थ
जब तक यह कवच उस व्यक्ति पर स्थिर रहता है, तब तक उसके संसार में—पुत्र-पौत्रों की पीढ़ी मजबूत होकर बनी रहती है।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥
Dehānte paramaṁ sthānaṁ yat surair api durlabham |
Prāpnoti puruṣo nityaṁ mahā-māyā-prasādataḥ ||55||
भावार्थ
मरण के समय पुरुष वो परम स्थान (मोक्ष) प्राप्त करता है—जो देवताओं की पहुँच से भी कठिन है—महामाया के प्रसाद से।
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥
Labhate paramaṁ rūpaṁ Śivena saha modate || OM ||56||
भावार्थ
वह परम रूप (दिव्य शरीर) प्राप्त करता है, और शिव के साथ आनंदित होता है।
ॐ — समापन।
॥इति श्रीदेव्याः कवचं सम्पूर्णम्॥
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