Shree Ganapatyatharvashirsham

Category:Ganesh Stotra
Sub Category:Powerful Ganesh Stotra for Removing Obstacles and Gaining Wisdom
  Shree Ganapatyatharvashirsham
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 Introduction

  • Ganapati as the Supreme Reality – Lord Ganesha is praised as the direct embodiment of Truth, the one eternal Brahman, the Creator, Sustainer, and Destroyer of all.
  • Source and Essence of the Universe – Everything in the universe arises from Him, exists in Him, and dissolves back into Him. He pervades the five elements and all directions.
  • Embodiment of Knowledge and Consciousness – Ganesha is described as full of wisdom, bliss, and consciousness. Yogis meditate on Him as the form of ultimate truth.
  • Power of Ganapati Mantra and Vidya – The stotra reveals the sacred Ganapati mantra "ॐ गं गणपतये नमः" as a potent spiritual formula that grants mastery and divine realization when chanted with devotion.
  • Benefits of Recitation – Regular recitation leads to removal of obstacles, freedom from sins, attainment of knowledge, wealth, and fulfillment of all desires, culminating in spiritual liberation.



 ॥ श्री गणपत्यथर्वशीर्षम् ॥

शान्तिपाठ:


ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः।
Om bhadram karṇebhiḥ śṛṇuyāma devāḥ।
हे देवताओं! हम अपने कानों से शुभ बातें सुनें।

भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
Bhadram paśyemākṣabhir yajatrāḥ।
और अपनी आंखों से मंगलमय दृश्य देखें।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाँसस्तनूभिः।
Sthirairaṅgais tuṣṭuvāṁs astanūbhiḥ।
हमारे अंग स्थिर और स्वस्थ रहें, जिससे हम तुम्हारी सेवा कर सकें।

व्यशेम देवहितं यदायुः॥
Vyashema devahitaṁ yad āyuḥ॥
हम ईश्वर की इच्छानुसार अपना जीवन शुभ कार्यों में बिताएं।


स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
Swasti na indro vṛddhaśravāḥ।
इन्द्र देव हमें शुभता प्रदान करें।

स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
Swasti naḥ pūṣā viśvavedāḥ।
पूषा देव, जो सब कुछ जानते हैं, हमें शुभ दें।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
Swasti nas tārkṣyo ariṣṭanemiḥ।
गरुड़ रूपी तक्षक हमारे जीवन को सुरक्षित रखें।

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
Swasti no bṛhaspatir dadhātu॥
बृहस्पति देव हमें शुभ बुद्धि प्रदान करें।


ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
Om Shāntiḥ Shāntiḥ Shāntiḥ॥
तीनों लोकों (दैविक, भौतिक, आत्मिक) में शांति हो।



मूल स्तोत्र प्रारंभ


हरिः ॐ नमस्ते गणपतये।
Hariḥ Om Namaste Ganapataye।
हे श्री गणपति! आपको नमस्कार है।

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि।
Tvameva pratyakṣaṁ tattvamasi।
आप ही प्रत्यक्ष सत्य स्वरूप हैं।

त्वमेव केवलं कर्तासि।
Tvameva kevalaṁ kartāsi।
आप ही सृष्टि के कर्ता हैं।

त्वमेव केवलं धर्तासि।
Tvameva kevalaṁ dhartāsi।
आप ही इसका पालन करते हैं।

त्वमेव केवलं हर्तासि।
Tvameva kevalaṁ hartāsi।
आप ही संहारकर्ता हैं।


त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
Tvameva sarvaṁ khalvidaṁ brahmāsi।
यह संपूर्ण जगत आप ही ब्रह्मस्वरूप हैं।

त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्॥
Tvaṁ sākṣād ātmāsi nityam॥
आप ही प्रत्यक्ष आत्मा हैं — नित्य, अविनाशी।


ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि॥
Ṛtaṁ vacmi। Satyaṁ vacmi॥
मैं धर्म की बात कहता हूँ, मैं सत्य बोलता हूँ।


अव त्वं माम्। अव वक्तारम्।
Ava tvaṁ mām। Ava vaktāram।
हे गणेश! मेरी रक्षा करो, मेरे वाणी की रक्षा करो।

अव श्रोतारम्। अव दातारम्।
Ava śrotāram। Ava dātāram।
मेरे श्रोता और देने वाले की रक्षा करो।

अव धातारम्। अवानुचानमव शिष्यम्।
Ava dhātāram। Avānucānam ava śiṣyam।
पालन करने वाले, अनुयायी और शिष्य की रक्षा करो।

अव पश्चात्तात्। अव पुरस्तात्।
Ava paścāttāt। Ava purastāt।
पीछे और आगे से मेरी रक्षा करो।

अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्।
Avottarāttāt। Ava dakṣiṇāttāt।
उत्तर और दक्षिण दिशाओं से मेरी रक्षा करो।

अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
Ava cordhvāttāt। Avādharāttāt।
ऊपर और नीचे से मेरी रक्षा करो।

सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्॥
Sarvato māṁ pāhi pāhi samantāt॥
सभी दिशाओं से मेरी रक्षा करो।


त्वं वाङ्मयः त्वं चिन्मयः।
Tvaṁ vāṅmayaḥ tvaṁ cinmayaḥ।
आप वाणी के और चेतना के अधिष्ठाता हैं।

त्वमानन्दमयः त्वं ब्रह्ममयः।
Tvam ānandamayaḥ tvaṁ brahmamayaḥ।
आप ही आनंदमय और ब्रह्मस्वरूप हैं।

त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि।
Tvaṁ sac-cid-ānanda advitīyo'si।
आप सत्-चित्-आनंद स्वरूप हैं — अद्वितीय हैं।

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
Tvaṁ pratyakṣaṁ brahmāsi।
आप प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं।

त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥
Tvaṁ jñānamayo vijñānamayo'si॥
आप ज्ञानस्वरूप और विज्ञानस्वरूप हैं।


                                     

 ध्यान श्लोक

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्।
Ekadantaṁ caturhastaṁ pāśamaṅkuśa-dhāriṇam।
जो एकदन्त हैं, चार हाथों वाले हैं, पाश और अंकुश धारण करते हैं।

रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥
Radaṁ ca varadaṁ hastair bibhrāṇaṁ mūṣakadhvajam॥
एक हाथ में दंत और दूसरे में वर देने की मुद्रा है, जिनका वाहन मूषक है।

रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
Raktaṁ lambodaraṁ śūrpakarṇakaṁ raktavāsasam।
वे लाल वर्ण के हैं, लम्बोदर हैं, बड़े कान वाले हैं और लाल वस्त्र धारण करते हैं।

रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्॥
Raktagandhānuliptāṅgaṁ raktapuṣpaiḥ supūjitam॥
वे लाल चंदन से लेपित हैं, लाल पुष्पों से पूजित हैं।

भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमव्ययम्।
Bhaktānukampinaṁ devaṁ jagat-kāraṇam avyayam।
जो भक्तों पर कृपा करने वाले हैं, जगत के कारण और अविनाशी हैं।

आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्॥
Āvirbhūtaṁ ca sṛṣṭyādau prakṛteḥ puruṣāt param॥
जो सृष्टि के आरंभ में प्रकृति और पुरुष से परे प्रकट हुए।

एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥
Evaṁ dhyāyati yo nityaṁ sa yogī yogināṁ varaḥ॥
जो व्यक्ति इस प्रकार प्रतिदिन ध्यान करता है, वह श्रेष्ठ योगियों में महान योगी बन जाता है।


नमस्कार मंत्र

नमो व्रातपतये नमो गणपतये।
Namo vrāta-pataye namo gaṇapataye।
व्रातों (गणों) के स्वामी, गणपति को नमस्कार।

नमः प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु लम्बोदराय।
Namaḥ pramatha-pataye namas te'stu lambodarāya।
प्रमथों के स्वामी, लम्बोदर को प्रणाम।

एकदन्ताय विघ्नविनाशिने।
Ekadantāya vighna-vināśine।
एकदंत, विघ्नों का नाश करने वाले को नमस्कार।

शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमः॥
Shiva-sutāya śrī-varadamūrtaye namaḥ॥
शिवपुत्र, वरदान देने वाली मूर्ति को नमस्कार।

फलश्रुति (श्रवण/पाठ का फल)

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
Etad atharvaśīrṣaṁ yo'dhīte sa brahmabhūyāya kalpate।
जो इस अथर्वशीर्ष का अध्ययन करता है, वह ब्रह्मस्वरूप बन जाता है।

स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते। स सर्वतः सुखमेधते।
Sa sarva-vighnair na bādhyate। Sa sarvataḥ sukhame dhate।
उसे कोई विघ्न बाधा नहीं देता, वह सभी ओर से सुख प्राप्त करता है।

स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते॥
Sa pañca-mahā-pāpāt pramucyate॥
वह पाँचों महापापों से मुक्त हो जाता है।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
Sāyam adhīyāno divasa-kṛtaṁ pāpaṁ nāśayati।
जो इसे संध्या समय पढ़ता है, दिन के पाप नष्ट हो जाते हैं।

प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
Prātar adhīyāno rātri-kṛtaṁ pāpaṁ nāśayati।
जो प्रातः पढ़ता है, रात्रि के पाप मिट जाते हैं।

सायं प्रातः प्रयुञ्जानः पापोऽपापो भवति।
Sāyaṁ prātaḥ prayuñjānaḥ pāpo'pāpo bhavati।
जो इसे सुबह-शाम पढ़ता है, वह पापी होकर भी पापरहित हो जाता है।

धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति॥
Dharmārtha-kāma-mokṣaṁ ca vindati॥
वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चारों पुरुषार्थ प्राप्त करता है।


निषेध और प्रयोग विधि

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
Idam atharvaśīrṣam aśiṣyāya na deyam।
यह स्तोत्र अयोग्य या शिष्य न हो ऐसे को न दें।

यो यदि मोहाद् दास्यति स पापीयान् भवति॥
Yo yadi mohād dāsyati sa pāpīyān bhavati॥
जो इसे मोहवश अयोग्य को देता है, वह पाप का भागी होता है।

सहस्रावर्तनात् यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्॥
Sahasrāvartanāt yaṁ kāmam adhīte taṁ tam anena sādhayet॥
जो इसे हजार बार जप करता है, वह जो चाहे, वह फल प्राप्त करता है।


प्रयोग विधियाँ और फल

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति।
Anena gaṇapatim abhiṣiñcati sa vāgmī bhavati।
जो इस स्तोत्र से गणपति का अभिषेक करता है, वह वाक्-पटु बनता है।

चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति॥
Caturthyām anaśnan japati sa vidyāvān bhavati॥
चतुर्थी को उपवास रखकर इसका जप करने वाला विद्वान बनता है।

इत्यथर्वणवाक्यम्। ब्रह्माद्याचरणं विद्यान्न बिभेति कदाचनेति॥
Ity atharvaṇavākyam। Brahmādyācaraṇaṁ vidyān na bibheti kadācana iti॥
यह अथर्ववाक्य है — इसका पालन करने वाला विद्या से कभी भय नहीं करता।




अन्य प्रयोग विधियाँ:

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
Yo dūrvāṅkurair yajati sa vaiśravaṇopamo bhavati।
जो दूर्वा से गणेश की पूजा करता है, वह कुबेर के समान धनवान बनता है।

यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति।
Yo lājair yajati sa yaśovān bhavati।
लाज (धान्य) से पूजन करने वाला यशस्वी होता है।

यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति।
Yo modaka-sahasreṇa yajati sa vāñchita-phalam avāpnoti।
जो हज़ार मोदकों से पूजा करता है, वह इच्छित फल पाता है।

स सर्वं लभते स सर्वं लभते॥
Sa sarvaṁ labhate sa sarvaṁ labhate॥
वह सब कुछ प्राप्त करता है, सचमुच सब कुछ।

अंतिम निष्कर्ष:

य एवं वेद। इत्युपनिषत्॥
Ya evaṁ veda। Ity upaniṣat॥
जो इस रहस्य को जानता है, वही सच्चा ज्ञानी है — यही उपनिषद् का ज्ञान है।

 समाप्ति शान्तिपाठ:

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः...
Om bhadram karṇebhiḥ śṛṇuyāma devāḥ...
(पहले दिए गए शान्तिपाठ के श्लोकों की पुनरावृत्ति होती है)

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
Om Shāntiḥ Shāntiḥ Shāntiḥ॥
तीनों लोकों में शांति हो।

॥ इति श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं सम्पूर्णम् ॥
Iti Shri Ganapati Atharvashirshaṁ Sampūrṇam

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