Bhairav Stotra – Powerful Ashtakam to Destroy Fear and Negativity

Category:Other Vedic Stotra
Sub Category:Vedic stotras are sacred hymns composed in praise of deities, meant to invoke divine blessings, spiritual elevation, and inner peace.
Bhairav Stotra – Powerful Ashtakam to Destroy Fear and Negativity
Bhairav Stotra – Powerful Ashtakam to Destroy Fear and Negativity Icon

Introduction

  • Bhairav Ashtakam is a potent eight-verse hymn composed by Adi Shankaracharya, praising Lord Bhairava, the fierce form of Lord Shiva.
  • It invokes Bhairava’s blessings for fearlessness, protection from negative energies, spiritual strength, and liberation.
  • The stotra emphasizes non-attachment, inner power, and surrender to divine will.
  • Reciting it regularly helps overcome ghost afflictions, black magic, fear, karmic burdens, and insecurity.
  • It is especially chanted on Bhairav Ashtami, Tuesdays, or in tantric and sadhana traditions for rapid spiritual elevation.




भैरवाष्टकम्

देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥

 Devarāja-sevyamāna pāvanāṅghri-paṅkajaṁ
Vyāla-yajña-sūtra-mindu-śekharaṁ kṛpākaram।
Nāradādi-yogi-vṛnda-vanditaṁ digambaraṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 1॥

 भावार्थ:
मैं काशी के अधिपति कालभैरव की वंदना करता हूँ,
जिनके पावन चरण कमल देवताओं द्वारा पूजित हैं,
जिनके गले में नाग यज्ञोपवीत की भाँति है, सिर पर चंद्रमा विराजमान है,
जो करुणामयी हैं और नारद आदि योगियों द्वारा पूजित हैं,
जो दिगंबर (निर्वस्त्र) हैं।

भानुकोटि भास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठम् ईप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालम् अंबुजाक्षम् अक्षशूलम् अक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥

 Bhānukoṭi-bhāsvaraṁ bhavābdhi-tārakaṁ paraṁ
Nīlakaṇṭhaṁ īpsitārtha-dāyakaṁ trilocanam।
Kālakālaṁ ambujākṣaṁ akṣaśūlaṁ akṣaraṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 2॥

 भावार्थ:
मैं उस कालभैरव को नमन करता हूँ
जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं,
भवसागर से पार कराने वाले हैं, नीले कंठ वाले हैं,
इच्छित फल देने वाले त्रिनेत्रधारी हैं,
जो समय के भी काल हैं, कमलनयन हैं, त्रिशूलधारी हैं और अक्षर (अविनाशी) हैं।

शूलटङ्क पाशदण्ड पाणिमादि कारणं
श्यामकायम् आदिदेवम् अक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

 Śūla-taṅka-pāśa-daṇḍa-pāṇim-ādi-kāraṇaṁ
Śyāmakāyaṁ ādidevaṁ akṣaraṁ nirāmayam।
Bhīma-vikramaṁ prabhuṁ vicitra-tāṇḍava-priyaṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 3॥

 भावार्थ:
मैं उन कालभैरव की वंदना करता हूँ
जिनके हाथों में त्रिशूल, खड्ग, पाश और दण्ड हैं,
जिनका शरीर श्यामवर्ण है, जो आदि देव और अक्षर हैं,
जो रोगमुक्त, बलवान, भयानक पराक्रमी और
विचित्र तांडव नृत्य में रमण करने वाले हैं।

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन् मनोज्ञहेमकिङ्किणी लसत्कटिं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

 Bhukti-mukti-dāyakaṁ praśasta-cāru-vigrahaṁ
Bhakta-vatsalaṁ sthitaṁ samasta-loka-vigraham।
Vinikvaṇan-manojña-hema-kiṅkiṇī-lasat-kaṭiṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 4॥

 भावार्थ:
मैं उस कालभैरव की स्तुति करता हूँ
जो भुक्ति (सांसारिक सुख) और मुक्ति दोनों देने वाले हैं,
जिनका रूप सुंदर और प्रशंसनीय है,
जो भक्तों के सदा स्नेही हैं और समस्त लोकों में व्याप्त हैं,
जिनकी कमर पर सुंदर स्वर्ण घंटियाँ (किंकिणी) झंकार करती हैं।

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाश मोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाश शोभिताङ्गमण्डलं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥

 Dharma-setu-pālakaṁ tv-adharma-mārga-nāśakaṁ
Karma-pāśa-mocakaṁ suśarma-dāyakaṁ vibhum।
Svarṇa-varṇa-śeṣa-pāśa-śobhita-aṅga-maṇḍalaṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 5॥

 भावार्थ:
मैं कालभैरव को नमन करता हूँ
जो धर्म की रक्षा करते हैं और अधर्म को नष्ट करते हैं,
जो कर्म के बंधनों से मुक्त करते हैं और परम शांति प्रदान करते हैं,
जिनका स्वर्ण वर्ण है और जिनका अंग पाशों (नागों) से सुशोभित है।

रत्नपादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकं
नित्यम् अद्वितीयम् इष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

 Ratna-pādukā-prabhābhirāma-pāda-yugmakaṁ
Nityam advitīyam iṣṭa-daivataṁ nirañjanam।
Mṛtyu-darpa-nāśanaṁ karāla-daṁṣṭra-mokṣaṇaṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 6॥

 भावार्थ:
मैं कालभैरव की वंदना करता हूँ
जिनके चरण रत्नजड़ित पादुकाओं से सुशोभित हैं,
जो सदा अद्वितीय, निःस्वार्थ और प्रिय इष्टदेव हैं,
जो मृत्यु के अभिमान को नष्ट करने वाले हैं
और जिनकी भयंकर दाढ़ें भी मोक्ष प्रदान करती हैं।

अट्टहास भिन्नपद्मजाण्डकोश सन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपाप जालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपाल मालिकन्धरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

 Aṭṭahāsa-bhinna-padmaja-aṇḍa-kośa-santatiṁ
Dṛṣṭi-pāta-naṣṭa-pāpa-jāla-mugra-śāsanam।
Aṣṭa-siddhi-dāyakaṁ kapāla-mālī-kandharaṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 7॥

 भावार्थ:
मैं कालभैरव को नमन करता हूँ
जिनकी अट्टहास (गर्जना) से ब्रह्माजी के अण्डकोश का संतुलन बिगड़ता है,
जिनकी दृष्टिपात से ही पाप नष्ट हो जाते हैं,
जो कठोर दंड के अधिपति हैं,
जो अष्टसिद्धियाँ देने वाले हैं और जिनके गले में खोपड़ियों की माला है।

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोक पुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

 Bhūta-saṅgha-nāyakaṁ viśāla-kīrti-dāyakaṁ
Kāśi-vāsa-loka-puṇya-pāpa-śodhakaṁ vibhum।
Nīti-mārga-kovidaṁ purātanaṁ jagat-patiṁ
Kāśikā-purādhinātha Kālabhairavaṁ bhaje॥ 8॥

 भावार्थ:
मैं काशी के अधिपति कालभैरव की स्तुति करता हूँ
जो भूतगणों के स्वामी हैं, महान यश प्रदान करते हैं,
काशी में निवास करने वालों के पुण्य-पाप का शोधन करते हैं,
जो नीति मार्ग के ज्ञाता, सनातन (पुरातन) और जगत के स्वामी हैं।

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥

 Kālabhairavāṣṭakaṁ paṭhanti ye manoharaṁ
Jñāna-mukti-sādhanaṁ vicitra-puṇya-vardhanam।
Śoka-moha-dainya-lobha-kopa-tāpa-nāśanaṁ
Te prayānti Kālabhairavāṅghri-sannidhiṁ dhruvam॥ 9॥

 भावार्थ:
जो भक्त इस सुन्दर कालभैरवाष्टक का पाठ करते हैं,
उन्हें ज्ञान और मुक्ति की प्राप्ति होती है, उनके पुण्य बढ़ते हैं,
और उनके सभी शोक, मोह, दरिद्रता, लोभ, क्रोध और ताप नष्ट हो जाते हैं।
वे निश्चित ही कालभैरव के चरणों की शरण में पहुँचते हैं।

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