ध्यानम्
गलद्रक्तमुण्डावलीकण्ठमाला
महोघोररावा सुदंष्ट्रा कराला ।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी
महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥१॥
galadrakṭa-muṇḍāvalīkṇṭha-mālā
mahoghorarāvā sudanṣṭrā karālā |
vivastrā śmaśānālayā muktakeśī
mahākālakāmākulā kālikeyam ||1||
हिंदी अर्थ:
हे कालिका! तुम्हारा मुख-गर्दन रक्त-मण्डित, महान भय उत्पन्न करने वाली दानव-कोटि वधु, सुंदर कटार-दन्त वाली,
श्मशान-पट्ट पर फैली जटाओं वाली, महाकाल की कामरस-भरी तेजस्विनी देवी — लक्ष्य है तुम्हारा!
भुजेवामयुग्मे शिरोऽसिं दधाना
वरं दक्षयुग्मेऽभयं वै तथैव ।
सुमध्याऽपि तुङ्गस्तना भारनम्रा
लसद्रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥२॥
bhujevā-mayugme śiro’siṁ dadhānā
varaṁ dakṣayugme’bhayaṁ vai tathāiva |
sumadhyā’pi tuṅgastanā bhāranamrā
lasadrakṭa-sṛkkadvayā susmitāsyā ||2||
हिंदी अर्थ:
हे देवी! आपके दोनों हाथों में शक्तिशाली भुजाएँ, आपके सिर पर सिंह-मुकुट,
दक्ष-दक्षिणापथ में वर (उदारता) और अभय (निर्भयता) प्रदान करने वाली,
आपका मध्य (छाती) उच्च और तन ऊँची, रक्त-स्रावित दो स्त्रोतों से सुस्निग्ध मुख-अभिव्यक्ति वाली — जय हो!
शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी
लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभिश्-
चतुर्दिक्षुशब्दायमानाऽभिरेजे ॥३॥
śavadvandva-karṇā-avat̃sā sukesī
lasat-preta-pāniṁ prayukta-eka-kāñcī |
śavākāra-mañcādhirūḍhā śivābhiś‑
catur-dikṣu-śabdāyamānā’bhireje ||3||
हिंदी अर्थ:
हे कालिका! तुम्हारी जटाओं में शव-विम्बित कान-कान प्रदीप्त,
तुम्हारे एक हाथ में लटके प्रेत-दण्ड को धारण कर एक काँचछड़ी,
तुम शव-रूपी मंच पर विराजमान हो, चारों दिशाओं में 'शिव शिव' उच्चारित करने वाली — तुम्हारी जय हो!
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीन्
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूबुः ।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥१॥
virañcyādi-devā-strayas-te guṇāstrīn
samārādhya kālīṁ pradhānā babhūbuḥ |
anādiṁ surādiṁ makhādiṁ bhavādiṁ
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||1||
हिंदी अर्थ:
विरंचि आदि तीनों देवता — ब्रह्मा, विष्णु, महेश — जब तुम्हारी पूजन से निवृत्त हुए,
तभी काली प्रमुख (प्रधान) बनीं।
जो नादि (शाश्वत), सुरादि (देवों का आदि), मखादि, भवादि — तुम्हारा स्वरूप वे पाते नहीं।
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं
सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥२॥
jaganmohinīyaṁ tu vāgvādinīyaṁ
suhṛt-poṣiṇī-śatru-sañhāraṇīyam |
vacas-stambhanīyaṁ kimu-ccāṭhanīyam
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||2||
हिंदी अर्थ:
तुम जगत को मोह में गढ़ देने वाली, वाणी-वक्तृत्वा में पारंगत, मित्रों की रक्षा करने वाली, शत्रुओं का संहार करने वाली,
किसी बात का मौन कराने वाली या पापों का उपहास करने वाली — तुम्हारा स्वरूप देवता भी नहीं पहचान पाते!
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली
मनोजास्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥३॥
iyaṁ svargadātrī punaḥ kalpavallī
manojāstu kāmān yathārthaṁ prakuryāt |
tathā te kṛtārthā bhavantītya nityaṁ
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||3||
हिंदी अर्थ:
तुम स्वर्ग पाने वाली, पुनः-कल्प-चक्र की वृद्धि करने वाली, मनुष्यों की मंगल-इच्छा पूर्ण करने वाली,
तुम्हारे कृपा से सभी पूर्ण होते हैं — देवता भी तुम्हारा स्वरूप गहराई से नहीं समझ पाते।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्का
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥४॥
surāpānamattā subhaktānuraktā
lasat-pūta-citte sadā-virbhavatte |
japadhyāna-pūjāsudhā-dhauta-paṅkā
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||4||
हिंदी अर्थ:
तुम मदिरा पी और भक्तों को प्रिय, निर्मल चित्त, पूरी तरह उन्नत अवस्था में;
तुम जप, ध्यान, पूजा की अमृत-यहि द्वारा मन को धुले — देवता भी तुम्हारा स्वरूप नहीं पहचानते।
चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥५॥
cidānanda-kandaṁ hasan mandamandaṁ
śarachchandrakōṭiprabha-puñjabimbam |
munīnāṁ kavīnām hṛdi dyōtayantaṁ
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||5||
हिंदी अर्थ:
संभ्रांति से हँसने वाले उस चंद्र-समान मूँछ तले चिरन्तन आनन्द-महाकाश का स्रोत —
जो मुनियों-ऋषियों के कल-कलित मन में मदहोश करता है — देवता उसे भी नहीं पा सकते।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा
कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥६॥
mahā-megha-kālī suraktāpi śubhra
kadācit vicitrākṛtiryōga-māyā |
na bālā na vṛddhā na kāmāturāpi
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||6||
हिंदी अर्थ:
महामेघ-सी धवल, सुर-रक्त सा उज्ज्वल, विचित्र-रूप और योग-मयी,
न बालिका न वृद्ध महिला, न किसी कामना रजोल्लसित पुरुष — देवता भी तुम्हारा स्वरूप न समझ सकें।
क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं
मया लोकमध्ये प्रकाशिकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥७॥
kṣamasvāparādhaṁ mahāgupta-bhāvaṁ
mayā lōkamadhyē prakāśikṛtaṁ yat |
tava dhyāna-pūtēna chāpalyabhāvāt
svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||7||
हिंदी अर्थ:
हे देवी! मेरे द्वारा लोक में जो भी दोष-चिपचिपा भाव उजागर हुआ, तुम्हारे ध्यान-चर्म की पवित्रता से उसका नाश हुआ —
देवता भी तुम्हारे रूप को नहीं पहचानते।
यदि ध्यानयुक्तं पठेद्योग्यं तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिः स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥८॥
yadi dhyāna-yuktaṁ paṭhēdyōgyaṁ tadā sarvalōkē viśālo bhavēccha
gṛhē cāṣṭa-siddhir-mṛtē cāpi muktiḥ svarūpaṁ tvadīyaṁ na vindanti devāḥ ||8||
हिंदी अर्थ:
यदि कोई व्यक्ति भक्तिपूर्वक और ध्यानयुक्त रूप में इसे जपे तो वह समस्त लोकों में प्रतिष्ठित होता है,
घर में अष्ट सिद्धियाँ और मृत्यु के बाद मुक्ति भी प्राप्त करता है — पर देवता भी तुम्हारा वास्तविक स्वरूप नहीं पा सकते।
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