ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं
निर्मलभासित शोभित लिङ्गम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥१॥
Brahma-Murāri-Surārcita Liṅgaṁ
Nirmala-Bhāsita-Śobhita Liṅgam।
Janmaja-Duḥkha-Vināśaka Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥1॥
भावार्थ:
जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं द्वारा पूजित है, जो निर्मल तेज से चमकता है, जन्मजनित सभी दुःखों का नाश करता है — उस सदाशिव लिंग को मैं नमन करता हूँ।
देवमुनिप्रवरार्चित लिङ्गं
कामदहम् करुणाकर लिङ्गम्।
रविसशङ्कर भासित लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥२॥
Deva-Muni-Pravarārcita Liṅgaṁ
Kāma-Daham Karuṇākara Liṅgam।
Ravi-Śaśaṅkara-Bhāsita Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥2॥
भावार्थ:
जो लिंग देवताओं और ऋषियों द्वारा पूजित है, कामनाओं को भस्म करता है, करुणा का सागर है और सूर्य-चंद्र के समान प्रकाशित है — उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
सर्वसुगन्धि सुलेपित लिङ्गं
बुद्धिविवर्धन कारण लिङ्गम्।
सिद्धसुरासुरवन्दित लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥३॥
Sarva-Sugandhi-Sulepita Liṅgaṁ
Buddhi-Vivardhana-Kāraṇa Liṅgam।
Siddha-Surāsura-Vandita Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥3॥
भावार्थ:
जो लिंग सुगंधित चंदन से अलंकृत है, बुद्धि को बढ़ाने वाला है, सिद्ध, देव और दैत्य जिनकी वंदना करते हैं — उस सदाशिव लिंग को मैं नमन करता हूँ।
कनकमहामणिभूषित लिङ्गं
फणिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम्।
दक्षस यज्ञविनाशन लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥४॥
Kanaka-Mahāmaṇi-Bhūṣita Liṅgaṁ
Phaṇipati-Veṣṭita-Śobhita Liṅgam।
Dakṣa-Yajña-Vināśana Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥4॥
भावार्थ:
जो लिंग स्वर्ण व रत्नों से विभूषित है, नागराज से सुशोभित है, जिसने दक्ष के यज्ञ का नाश किया — उस सदाशिव लिंग को मैं वंदन करता हूँ।
कुंठित देव मुनिप्रवर लिङ्गं
कमलदलीदल शोभित लिङ्गम्।
कर्णवेद सुतार्चित लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥५॥
Kumthita-Deva-Muni-Pravara Liṅgaṁ
Kamala-Dalī-Dala-Śobhita Liṅgam।
Karna-Veda-Sutārcita Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥5॥
भावार्थ:
जो लिंग देव, मुनियों द्वारा पूजित है, कमल की पंखुड़ियों के समान सुंदर है, और जो कर्णवेद की संतान (पुत्रों) द्वारा पूजित है — उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
पुष्पहरगन्धलेपित लिङ्गं
पुण्यमहामणि दीपित लिङ्गम्।
पुण्यकृतां फलदायक लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥६॥
Puṣpa-Hara-Gandha-Lepita Liṅgaṁ
Puṇya-Mahāmaṇi-Dīpita Liṅgam।
Puṇya-Kṛtāṁ Phaladāyaka Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥6॥
भावार्थ:
जो लिंग फूलों और सुगंध से पूजित होता है, पुण्यरत्नों से प्रकाशित है, और पुण्यकर्म करने वालों को फल देता है — उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
महेश्वर लिङ्गं नतेषु वरं
पावनमपापहरं शुभलिङ्गम्।
जन्मज बन्धविमोचन लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥७॥
Maheśvara Liṅgaṁ Nateṣu Varaṁ
Pāvanam-Apāpa-Haraṁ Śubha Liṅgam।
Janmaja-Bandha-Vimocana Liṅgaṁ
Tat Praṇamāmi Sadāśiva Liṅgam॥7॥
भावार्थ:
जो लिंग महेश्वर रूप है, भक्तों को वरदान देने वाला है, पवित्र है, पापों को हरने वाला है, जन्मबंधन से मुक्त करने वाला है — उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥८॥
Liṅgāṣṭakam-Idaṁ Puṇyaṁ Yaḥ Paṭhech-Chiva-Sannidhau।
Śivalokam-Avāpnoti Śivena Saha Modate॥8॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति शिवजी के समक्ष इस पवित्र लिंगाष्टक का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिवजी के साथ आनंदपूर्वक वास करता ह
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