श्रीगणेशायनमः।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य।बुधकौशिक ऋषिः।श्रीसीतारामचन्द्रो देवता।अनुष्टुप् छन्दः।सीता शक्तिः।श्रीमद्हनुमान् कीलकम्।श्रीसीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥
वामाङ्कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचन्द्रम्॥
dhyāyed ājānu-bāhuṁ dhṛta-śara-dhanuṣaṁ baddha-padmāsana-stham।
pītaṁ vāso vasānaṁ nava-kamala-dala-spardhi-netraṁ prasannam॥
vāmāṅka-ārūḍha-sītā-mukha-kamala-milal-lochanaṁ nīradābhaṁ।
nānālaṅkāra-dīptaṁ dadhatam-uru-jaṭā-maṇḍanaṁ rāmacandram॥
भावार्थ:
भगवान श्रीराम का ध्यान करें — वे घुटनों तक लंबी भुजाओं वाले हैं, धनुष और बाण धारण किए हुए पद्मासन में विराजमान हैं। उनके वस्त्र पीले हैं, नेत्र नव कमल दल जैसे हैं और उनका चेहरा प्रसन्नता से भरा हुआ है। वे अपने बाएं भाग में विराजमान सीता माता के मुख की ओर देख रहे हैं। उनका रंग मेघ के समान नीलवर्ण है और वे अनेकों आभूषणों से अलंकृत हैं। उनके सिर पर विशाल जटाजूट सुशोभित है।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥1॥
caritaṁ raghunāthasya śatakoti-pravistaram।
ekaika-makṣaraṁ puṁsāṁ mahāpātaka-nāśanam॥1॥
भावार्थ:
भगवान रघुनाथ (श्रीराम) का चरित्र करोड़ों कथाओं में फैला है, और उनका एक-एक अक्षर भी महापापों का नाश करने वाला है। इस स्तोत्र का पाठ करने वाला व्यक्ति पवित्र होता जाता है।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥2॥
dhyātvā nīlotpala-śyāmaṁ rāmaṁ rājīva-lochanam।
jānakī-lakṣmaṇa-opetaṁ jaṭā-mukuṭa-maṇḍitam॥
भावार्थ:
श्रीराम का ध्यान करें, जो नीलकमल के समान श्याम वर्ण के हैं, कमल जैसे नेत्रों वाले हैं, जिनके साथ माता जानकी और लक्ष्मण हैं, और जो जटाजूट मुकुट से सुशोभित हैं।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्॥3॥
sāsituṇa-dhanur-bāṇa-pāṇiṁ naktaṁ carāntakam।
sva-līlayā jagat-trātum āvirbhūtam ajaṁ vibhum॥
भावार्थ:
श्रीराम जिनके हाथों में तरकस, धनुष और बाण हैं, जो रात्रि में विचरण करने वाले राक्षसों का अंत करते हैं, और जो अपनी लीला से संसार की रक्षा के लिए प्रकट हुए हैं — वे अज (अजन्मा) और परमेश्वर हैं।
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥4॥
rāma-rakṣāṁ paṭhet prājñaḥ pāpa-ghnīṁ sarva-kāma-dām।
śiro me rāghavaḥ pātu bhālaṁ daśaratha-ātmajaḥ॥
भावार्थ:
बुद्धिमान व्यक्ति को यह रामरक्षा स्तोत्र पढ़ना चाहिए, जो पापों का नाश करने वाला और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला है। श्री राघव (राम) मेरे सिर की रक्षा करें और दशरथ नंदन मेरे ललाट (माथे) की रक्षा करें।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥5॥
kausalyeyo dṛśau pātu viśvāmitra-priyaḥ śrutī।
ghrāṇaṁ pātu makha-trātā mukhaṁ saumitri-vatsalaḥ॥
भावार्थ:
कौशल्या पुत्र श्रीराम मेरी दोनों आँखों की रक्षा करें, विश्वामित्र को प्रिय राम मेरी श्रवण शक्ति की रक्षा करें। जो यज्ञों के रक्षक हैं वे मेरी नासिका (घ्राण) की रक्षा करें, और लक्ष्मण के प्रिय राम मेरे मुख की रक्षा करें।
जिव्हां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥6॥
jihvāṁ vidyā-nidhiḥ pātu kaṇṭhaṁ bharata-vanditaḥ।
skandhau divya-āyudhaḥ pātu bhujau bhagneśa-kārmukaḥ॥
भावार्थ:
विद्या के भंडार श्रीराम मेरी जिह्वा (जीभ) की रक्षा करें, भरत द्वारा पूजित राम मेरी गर्दन (कंठ) की रक्षा करें। दिव्य आयुध धारण करने वाले मेरी दोनों भुजाओं की रक्षा करें, और भगवान शिव का धनुष तोड़ने वाले राम मेरी भुजाओं की रक्षा करें।
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥7॥
karau sītā-patiḥ pātu hṛdayaṁ jāmadagnya-jit।
madhyaṁ pātu khara-dhvaṁsī nābhiṁ jāmbavat-āśrayaḥ॥
भावार्थ:
माता सीता के प्रिय श्रीराम मेरे दोनों हाथों की रक्षा करें, जो परशुराम को भी परास्त कर चुके हैं वे मेरे हृदय की रक्षा करें। खर राक्षस का वध करने वाले राम मेरी कमर और जाम्बवान के आश्रयदाता मेरी नाभि की रक्षा करें।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥8॥
sugrīveśaḥ kaṭī pātu sakthinī hanumat-prabhuḥ।
ūrū raghūttamaḥ pātu rakṣaḥ-kula-vināśakṛt॥
भावार्थ:
सुग्रीव के स्वामी श्रीराम मेरी कटी (कमर) की रक्षा करें, हनुमान के आराध्य प्रभु मेरी जांघों की रक्षा करें। रघुकुल शिरोमणि श्रीराम, जिन्होंने राक्षसों का विनाश किया, वे मेरी दोनों जांघों की रक्षा करें।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोSखिलं वपुः॥9॥
jānunī setu-kṛt pātu jaṅghe daśa-mukha-āntakaḥ।
pādau bibhīṣaṇa-śrīdaḥ pātu rāmo'khilaṁ vapuḥ॥
भावार्थ:
सेतु बनाने वाले श्रीराम मेरे दोनों घुटनों की रक्षा करें, रावण का वध करने वाले मेरी पिंडलियों की रक्षा करें। विभीषण को राज्य देने वाले प्रभु श्रीराम मेरे चरणों और पूरे शरीर की रक्षा करें।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥10॥
etāṁ rāma-bala-upetāṁ rakṣāṁ yaḥ sukṛtī paṭhet।
sa cirāyuḥ sukhī putrī vijayī vinayī bhavet॥
भावार्थ:
जो भी पुण्यात्मा यह रामरक्षा स्तोत्र पढ़ता है, वह दीर्घायु, सुखी, संतानवान, विजयी और विनम्र बनता है। यह स्तोत्र रामबल से युक्त रक्षक कवच के समान है।
पाताल-भूतल-व्योम-चारिणश्छद्मचारिणः।
न दृष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥11॥
pātāla-bhūtala-vyoma-cāriṇaś-chadma-cāriṇaḥ।
na dṛṣṭum api śaktās te rakṣitaṁ rāma-nāmabhiḥ॥
भावार्थ:
जो राक्षस पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरण करते हैं तथा छलपूर्वक किसी को हानि पहुँचाना चाहते हैं — वे भी उस व्यक्ति को देख नहीं सकते जो रामनाम से रक्षित है।
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापैः भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥12॥
rāmeti rāma-bhadreti rāma-candreti vā smaran।
naro na lipyate pāpaiḥ bhuktiṁ muktiṁ ca vindati॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति “राम”, “रामभद्र” या “रामचंद्र” नामों का स्मरण करता है, वह पापों से अछूता रहता है और उसे संसारिक सुख (भुक्ति) और मोक्ष — दोनों की प्राप्ति होती है।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः॥13॥
jagaj-jetraika-mantreṇa rāma-nāmnā’bhirakṣitam।
yaḥ kaṇṭhe dhārayet tasya karasthāḥ sarva-siddhayaḥ॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति जगत को जीतने वाले एकमात्र मंत्र “रामनाम” से रक्षित होकर उसे अपने कंठ में धारण करता है, उसके लिए सभी सिद्धियाँ हाथों में रखी हुई (सुलभ) होती हैं।
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्॥14॥
vajra-pañjara-nāma-idaṁ yo rāma-kavacaṁ smaret।
avyāhata-ājñaḥ sarvatra labhate jaya-maṅgalam॥
भावार्थ:
जो इस रामकवच को “वज्रपंजर” (अटूट कवच) रूप में स्मरण करता है, उसकी आज्ञा सभी स्थानों पर निर्बाध मानी जाती है और वह सदा विजय व मंगल को प्राप्त करता है।
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः॥15॥
ādiṣṭavān yathā svapne rāma-rakṣāmimāṁ haraḥ।
tathā likhitavān prātaḥ prabuddho budha-kauśikaḥ॥
भावार्थ:
जैसे भगवान शिव ने इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश मुझे स्वप्न में दिया, वैसे ही मैं ऋषि बुध कौशिक ने प्रातः जागकर इस स्तोत्र को लिखा।
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः॥16॥
ārāmaḥ kalpa-vṛkṣāṇāṁ virāmaḥ sakalāpadām।
abhirāmas-tri-lokānāṁ rāmaḥ śrīmān sa naḥ prabhuḥ॥
भावार्थ:
श्रीराम कल्पवृक्षों का आनंद हैं, समस्त दुखों का विराम हैं, तीनों लोकों को सुख देने वाले हैं। वे श्रीयुक्त भगवान हमारे भी स्वामी बनें।
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥17॥
taruṇau rūpa-sampannau sukumārau mahā-balau।
puṇḍarīka-viśālakṣau cīra-kṛṣṇājina-āmbarau॥
भावार्थ:
श्रीराम और लक्ष्मण दोनों ही नवयुवक हैं, सुंदरता में अनुपम, कोमल शरीर वाले और महान बलशाली हैं। उनके नेत्र कमल के समान विशाल हैं और वे मृगचर्म व वल्कल वस्त्र धारण किए हुए हैं।
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥18॥
phala-mūla-śinau dāntau tāpasau brahma-cāriṇau।
putrau daśarathasya-aitau bhrātarau rāma-lakṣmaṇau॥
भावार्थ:
वे दोनों फल-मूल सेवन करने वाले, संयमी, तपस्वी और ब्रह्मचारी हैं। ये दोनों श्रीराम और लक्ष्मण दशरथ के पुत्र और आपस में भाई हैं।
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ॥19॥
śaraṇyau sarva-sattvānāṁ śreṣṭhau sarva-dhanuṣmatām।
rakṣaḥ-kula-nihantārau trāyetāṁ no raghūttamau॥
भावार्थ:
जो समस्त प्राणियों को शरण देने वाले हैं, सभी धनुर्धारी वीरों में श्रेष्ठ हैं, और जिन्होंने राक्षसों के कुल का नाश किया — वे रघुकुलशिरोमणि श्रीराम और लक्ष्मण हमारी रक्षा करें।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्॥20॥
ātta-sajja-dhanuṣā viṣu-spṛśāvakṣayāśuga-niṣaṅga-saṅginau।
rakṣaṇāya mama rāma-lakṣmaṇāvagrataḥ pathi sadaiva gacchatām॥
भावार्थ:
श्रीराम और लक्ष्मण, जिनके धनुष तैयार हैं, बाणों से युक्त हैं, अक्षय तूणीर धारण किए हुए हैं — वे मेरी रक्षा हेतु सदा मार्ग में मेरे आगे-आगे चलें।
संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु स लक्ष्मणः॥21॥
saṁnaddhaḥ kavacī khaḍgī cāpa-bāṇa-dharo yuvā।
gacchan manoratho'smākaṁ rāmaḥ pātu sa lakṣmaṇaḥ॥
भावार्थ:
जो युवा श्रीराम कवच से सज्जित हैं, खड्ग और धनुष-बाण धारण किए हैं — वे लक्ष्मण सहित चलते हुए हमारे समस्त मनोरथों की पूर्ति करें और हमारी रक्षा करें।
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः॥22॥
rāmo dāśarathiḥ śūro lakṣmaṇānu-caro balī।
kākutsthaḥ puruṣaḥ pūrṇaḥ kausalyeyo raghūttamaḥ॥
भावार्थ:
श्रीराम दशरथ पुत्र, पराक्रमी, लक्ष्मण के साथ चलने वाले, बलशाली, काकुत्स वंश के, पूर्ण पुरुष और कौसल्या के पुत्र हैं। वे रघुकुल के श्रेष्ठ हैं।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः॥23॥
vedānta-vedyo yajñeśaḥ purāṇa-puruṣottamaḥ।
jānakī-vallabhaḥ śrīmān aprameya-parākramaḥ॥
भावार्थ:
श्रीराम वेदांत से जाने जाते हैं, यज्ञों के अधिपति हैं, पुराणों में श्रेष्ठ पुरुष कहे गए हैं। वे जानकीजी के प्रिय, श्रीयुक्त और अप्रमेय पराक्रम वाले हैं।
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः॥24॥
ityetāni japen nityaṁ mad-bhaktaḥ śraddhayānvitaḥ।
aśvamedha-adhikaṁ puṇyaṁ samprāpnoti na saṁśayaḥ॥
भावार्थ:
जो मेरा भक्त इन नामों का नित्य श्रद्धा से जप करता है, वह अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त करता है — इसमें कोई संदेह नहीं।
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः॥25॥
rāmaṁ dūrvā-dala-śyāmaṁ padmākṣaṁ pīta-vāsasam।
stuvanti nāmabhir divyair na te saṁsāriṇo narāḥ॥
भावार्थ:
जो व्यक्ति दूर्वा-दल जैसी श्याम कांति वाले, कमल-नेत्रों वाले, पीतवस्त्रधारी श्रीराम का दिव्य नामों से स्तवन करते हैं, वे संसार में बंधे हुए नहीं रहते।
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्॥
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्॥26॥
rāmaṁ lakṣmaṇa-pūrvajaṁ raghuvaraṁ sītāpatiṁ sundaram।
kākutsthaṁ karuṇārṇavaṁ guṇa-nidhiṁ vipra-priyaṁ dhārmikam॥
rājendraṁ satya-sandhaṁ daśaratha-tanayaṁ śyāmalaṁ śānta-mūrtiṁ।
vande lokābhirāmaṁ raghukula-tilakaṁ rāghavaṁ rāvaṇa-arim॥
भावार्थ:
मैं लक्ष्मण के अग्रज, रघुवंशी श्रेष्ठ, सीता के प्रियतम, सुंदर, काकुत्स वंशज, करुणा के सागर, गुणों के भंडार, ब्राह्मणों को प्रिय और धर्मात्मा श्रीराम को प्रणाम करता हूँ।
वे सत्यप्रतिज्ञ, राजाओं के राजा, दशरथ के पुत्र, श्याम वर्ण के और शांतस्वरूप हैं।
मैं उन लोकों के प्रिय, रघुकुल के तिलक और रावण के शत्रु श्रीराम को नमस्कार करता हूँ।
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥27॥
rāmāya rāma-bhadrāya rāma-candrāya vedhase।
raghunāthāya nāthāya sītāyāḥ pataye namaḥ॥
भावार्थ:
मैं राम, रामभद्र, रामचंद्र, ब्रह्मा के स्वरूप, रघुनाथ, जगन्नाथ और जानकी के प्रिय पति श्रीराम को नमस्कार करता हूँ।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम॥28॥
śrīrāma rāma raghunandana rāma rāma।
śrīrāma rāma bharatāgraja rāma rāma।
śrīrāma rāma raṇa-karkaśa rāma rāma।
śrīrāma rāma śaraṇaṁ bhava rāma rāma॥
भावार्थ:
हे श्रीराम! हे रघुनंदन! हे भरत के अग्रज! हे रणभूमि के वीर! मैं आपकी शरण में हूँ, मुझे अपने शरणागत को स्वीकार कीजिए — बारंबार राम नाम को स्मरण करता हूँ।
त:
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥29॥
śrīrāma-candra-caraṇau manasā smarāmi।
śrīrāma-candra-caraṇau vacasā gṛṇāmi।
śrīrāma-candra-caraṇau śirasā namāmi।
śrīrāma-candra-caraṇau śaraṇaṁ prapadye॥
भावार्थ:
मैं श्रीरामचंद्रजी के चरणों को मन से स्मरण करता हूँ, वाणी से उनका गुणगान करता हूँ, सिर झुकाकर वंदन करता हूँ और उनके चरणों की शरण लेता हूँ।
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुः।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥30॥
mātā rāmo mat-pitā rāma-candraḥ।
svāmī rāmo mat-sakhā rāma-candraḥ।
sarvasvaṁ me rāma-candro dayāluḥ।
nānyaṁ jāne naiva jāne na jāne॥
भावार्थ:
मेरी माता राम हैं, मेरे पिता रामचंद्र हैं। मेरे स्वामी राम हैं और मेरे सखा भी रामचंद्र हैं। मेरे लिए सब कुछ वही करुणामय रामचंद्र हैं। मैं किसी और को नहीं जानता, न जानना चाहता हूँ।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्॥31॥
dakṣiṇe lakṣmaṇo yasya vāme ca janakātmajā।
purato mārutir yasya taṁ vande raghunandanam॥
भावार्थ:
जिसके दक्षिण में लक्ष्मण हैं, बाईं ओर जनकपुत्री सीता हैं, और सामने हनुमान हैं — ऐसे रघुनंदन श्रीराम को मैं श्रद्धापूर्वक वंदन करता हूँ।
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं
श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥32॥
lokābhirāmaṁ raṇa-raṅga-dhīraṁ
rājīva-netraṁ raghu-vaṁśa-nātham।
kāruṇya-rūpaṁ karuṇā-karantaṁ
śrī-rāma-candraṁ śaraṇaṁ prapadye॥
भावार्थ:
जो लोकों को प्रिय हैं, युद्धभूमि में धीर वीर हैं, कमल जैसे नेत्र वाले हैं, रघुवंश के स्वामी हैं और करुणा के साक्षात स्वरूप हैं — ऐसे श्रीरामचंद्र की मैं शरण लेता हूँ।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥33॥
manojavaṁ māruta-tulya-vegaṁ
jitendriyaṁ buddhimatāṁ variṣṭham।
vātātmajaṁ vānarayūtha-mukhyaṁ
śrīrāmadūtaṁ śaraṇaṁ prapadye॥
भावार्थ:
जो मन के समान तेज गति वाले हैं, वायु के समान तीव्र हैं, इन्द्रियों को जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, पवनपुत्र, वानरसेना के प्रमुख और श्रीराम के दूत हैं — उन हनुमानजी की मैं शरण लेता हूँ।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्॥34॥
kūjantaṁ rāma-rāmeti madhuraṁ madhurākṣaram।
āruhya kavitā-śākhāṁ vande vālmīki-kokilam॥
भावार्थ:
जो "राम राम" का मधुर उच्चारण करते हैं, जिनके हर शब्द मधुर हैं, जो काव्य-शाखा (कविता) पर बैठे कोयल के समान हैं — ऐसे वाल्मीकि मुनि को मैं प्रणाम करता हूँ।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥35॥
āpadām apahartāraṁ dātāraṁ sarva-sampadām।
lokābhirāmaṁ śrī-rāmaṁ bhūyo bhūyo namāmyaham॥
भावार्थ:
जो संकटों का नाश करने वाले हैं, सभी प्रकार की संपदाओं के दाता हैं, लोकों के प्रियतम हैं — ऐसे श्रीराम को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥36॥
bharjanaṁ bhava-bījānām arjanaṁ sukha-sampadām।
tarjanaṁ yama-dūtānāṁ rāma-rāmeti garjanam॥
भावार्थ:
“राम-राम” का गर्जन (नाम-स्मरण) संसार के पाप बीजों को भस्म कर देता है, सुख-संपत्ति को आकर्षित करता है और यमदूतों को डराता है।
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः॥
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥37॥
Hinglish:
rāmo rājamaṇiḥ sadā vijayate rāmaṁ rameśaṁ bhaje।
rāmeṇābhihatā niśācara-camū rāmaaya tasmai namaḥ॥
rāmān nāsti parāyaṇaṁ parataraṁ rāmasya dāso'smy aham।
rāme cittalayaḥ sadā bhavatu me bho rāma mām uddhara॥
भावार्थ:
राम सदा विजयी रहें, वे राजाओं के मणि हैं। मैं रमेश (लक्ष्मीपति) श्रीराम की भक्ति करता हूँ। राक्षसों की सेना जिनसे नष्ट हुई — ऐसे राम को प्रणाम।
राम से बढ़कर कोई शरण नहीं, मैं उनका दास हूँ। हे राम! मेरा चित्त सदा आप में लीन रहे — मुझे संसार से उबारिए।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥38॥
rāma rāmeti rāmeti rame rāme manorame।
sahasra-nāma-tat-tulyaṁ rāma-nāma varānane॥
भावार्थ:
हे सुंदर मुख वाली देवी! “राम राम राम” नाम का जाप, मन को अत्यंत रमणीय लगता है और यह विष्णु सहस्रनाम के बराबर फल देने वाला है।
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