शिव तांडव स्तोत्रम्
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥
Jaṭā kaṭāha sambhrama‑bhraman nilimpa nirjharī
Vilola vīchi vallarī virājamāna mūrdhani
Dhagad dhagad dhagad‑jvala l‑lalāṭa‑paṭṭa‑pāvake
Kishora‑chandra‑śekhare ratiḥ pratikṣaṇaṁ mama
भावार्थ:
हे भगवान! आपके सिर पर बहती गंगा, आपके जटाओं में लहराती,
आपके मस्तक पर धधकती अग्नि और किशोर चंद्र की सुशोभा — इस दृष्टि में मेरा मन क्षण-क्षण आनंदित हो।
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥
Dharā‑dharendra‑nandini‑vilāsa‑bandhu‑bandhura
Sphurad‑diganta‑santati‑pramodamāna‑mānase
Kṛpā‑kaṭākṣa‑dhoraṇī‑niruddha‑durdharāpadi
Kvācid‑digambare mano vinōdam etu vastuni
भावार्थ:
हे शिव! आपका रूप, पर्वतराज (धराधर) की नवनीत नंदिनी जैसी आकर्षक है,
वह दिखती है दूर-दूर तक फैली असंख्य खुशियों में,
आपकी करुणा दृष्टि से संकटों का नाश होता है—
कभी-कभी आपका निर्भय, मुक्तात्मा स्वरुप देखकर मेरा मन खिल उठता है।
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो
विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥
Jaṭā‑bhujanga‑piṅgala‑sphurat‑phaṇā‑maṇi‑prabhā
Kadambakuṅkuma‑drava‑pralipta‑digvadhū‑mukhe
Madāndhasindhura‑sphurat‑tvaguttarīya‑medure
Mano vinōdamadbhutaṁ bibhartru bhūtabhartari
भावार्थ:
हे भोलेनाथ! आपके बालों में लहराता नील सांप और मणियों की फुहार,
कदम्ब कमल की कुमकुम-पतियाँ आपके मुखासीन धूलरूपी मस्तक पर झिलमिलाती हैं
और उस दृश्य से मेरा मन अद्भुत आनंदित होता है।
संस्कृत:
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥
Sahasralōcana‑prabhṛtya‑śēṣalēkha‑śēkhara
Prasūnadhūlidhōraṇī‑vidhūsarāṅghri‑pīṭhabhūḥ
Bhujangarājamālayā‑nibaddhajāṭajāṭṭakaḥ
Śriyai cirāyā jāyatāṁ cakorabandhu‑śēkharaḥ
भावार्थ:
हे त्रिनेत्री! आपके मुकुट में चंद्र, आपके दश-तेज रूप, आपके पाँवों तलों पर तिलक-धूल की धारा,
सांपों की राज-माला बंधी आपके जटों और आपका रूप — इनसे मेरे जीवन में दीर्घकाल समृद्धि प्राप्त हो।
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे शिरो जटालमस्तु नः॥
Lalāṭa‑catvara‑jvalad‑dhanañjaya‑sphuliṅga‑bhā
Nipīta‑pañca‑sāyakaṁ namannilimpa‑nāyakam।
Sudhā‑mayūkha‑lekhayā virājamāna‑śekharaṁ
Mahākapāli‑sampade śiro jaṭālamastu naḥ॥
भावार्थ:
कामदेव को भस्म कर देने वाली जो ज्वाला आपके मस्तक पर जलती है,
जो स्वर्ग के देवताओं द्वारा वंदनीय हैं,
और जिनके सिर पर चंद्रमा की उज्ज्वल किरणें शोभायमान हैं —
वह शिव की जटाएं हमें भी सिद्धि प्रदान करें।
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥
Karāla‑bhāla‑paṭṭikā‑dhagad‑dhagad‑dhagaj‑jvalad‑
Dhanañjaya‑āhutī‑kṛta‑pracaṇḍa‑pañca‑sāyake।
Dharādharendra‑nandini‑kucāgra‑citra‑patraka‑
Prakalpanaika‑śilpini trilocane ratir mama॥
भावार्थ:
मेरी प्रीति उस त्रिनेत्रीय भगवान शिव में हो,
जिन्होंने अपने भीषण मस्तक की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया,
और जो स्वयं देवी पार्वती की छाती पर चित्रकारी करने वाले कलाकार जैसे शोभायमान हैं।
नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमःप्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः॥
Navīna‑megha‑maṇḍalī‑niruddha‑durdhara‑sphurat
Kuhū‑niśīthinī‑tamaḥ‑prabandha‑baddha‑kandharaḥ।
Nlimpa‑nirjharī‑dharaḥ stanotu kṛtti‑sindhuraḥ
Kalā‑nidhāna‑bandhuraḥ śriyaṁ jagad‑dhurandharaḥ॥
भावार्थ:
जो ब्रह्मांड का भार अपने कंधों पर उठाए हैं,
जिनकी गर्दन अमावस्या की रात जैसे अंधकार से ढकी है,
जो अलौकिक गंगा को धारण करते हैं,
और जिनका शरीर हाथी की खाल से आच्छादित है — वे शिव हमें समृद्ध करें।
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥
Praphulla‑nīla‑paṅkaja‑prapañca‑kālima‑prabhā
Valambi‑kaṇṭha‑kandalī‑ruci‑prabaddha‑kandharam।
Smaracchidaṁ puracchidaṁ bhavacchidaṁ makhacchidaṁ
Gajacchidāndhaka‑cchidaṁ tamantaka‑cchidaṁ bhaje॥
भावार्थ:
मैं उस शिव की पूजा करता हूँ जिन्होंने कामदेव, त्रिपुर, संसार, यज्ञ, हाथी, अंधक और यम का नाश किया।
जिनकी गरदन पर कमल जैसी छटा है और जो गहराई से मोहित कर लेते हैं।
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥
Akharva‑sarva‑maṅgalā‑kalā‑kadamba‑mañjarī
Rasa‑pravāha‑mādhurī‑vijṛmbhaṇā‑madhu‑vratam।
Smarāntakaṁ purāntakaṁ bhavāntakaṁ makhāntakaṁ
Gajāntakāndhaka‑āntakaṁ tamantakāntakaṁ bhaje॥
भावार्थ:
मैं उन शिव की उपासना करता हूँ जो सभी पापों का अंत करते हैं,
जिन्होंने काम, त्रिपुर, संसार, यज्ञ, हाथी, अंधक, और मृत्यु के देवता को भी समाप्त कर दिया।
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः॥
Jayatv adbhr vabhram bhramad bhujanga mashvasa-
Dvinirgamat krama sphurat karalabhala havyavāṭ
Dhimi ddhimiddhimiddhvananmṛdaṅga tuṅgaṅgala-
Dhvani krama pravartita pracaṇḍa tāṇḍavaḥ Śivaḥ
भावार्थ:
जिनका तांडव मृदंग की भारी-भरकम ध्वनि और सिकल की तेज़ अश्व-गर्जना तारता है,
उनके भीषण तांडव की गर्जना से मेरा मन आज भी घबराता है।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो-
र्वरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥
Dṛṣad vichitra tal payor bhujanga mauktika srajo-
rvariṣṭha ratna loṣṭhayoḥ suhrid vipakṣa pakṣayoḥ।
Tṛṇāra vinda cakṣuṣoḥ prajā mahī mahendrayoḥ
Sama pravṛtti ka da sadāśivaṁ bhajāmyaham
भावार्थ:
हे सदा शिव! मैं कब आपका भजन करूंगा,
जिनके नेत्र नए-नए प्राणों, रत्नों या धूल से निर्मित हैं,
और जो सदृश दृष्टि से सृष्टि को एकसमान दृष्टि देते हैं?
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥
Kadā nilimpa nirjharī nikuñjakoṭare vasan
vimukta durmatiḥ sadā śiraḥ sthamañjaliṁ vahan।
Vilola lola locano lalāma bhāla laghnakaḥ
Shive ti mantram uccaran kādā sukhi bhavāmyaham
भावार्थ:
मैं कब सुखी होऊँगा, जब मैं गुफा में रहकर गंगा की धारा का श्रवण करूं,
और निरन्तर शिव मंत्र उच्चारित करता, उसके तेजस्वी लोलक नेत्रों को निहारूं?
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥
Imaṁ hi nityamev amuktam uttamottamaṁ stavaṁ
paṭhan smaran bruvannaro viśuddhi me ti santatam।
Hare gurau subhakti māśu yāti nānyathā gatiṁ
vimohanaṁ hi dehināṁ suśaṅkarasya cintanam
भावार्थ:
जो नर प्रतिदिन, स्मरण करते, उच्चारित करते और इस उत्तम स्तोत्र का पाठ करता है, उसे शुद्धि प्राप्त होती है।
हिले गुरु की भक्ति शीघ्र ही उसे किसी अन्य मार्ग से नहीं, बल्कि सुसंस्कर शिवचिंतन द्वारा मोक्ष मिलता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं
सदैवसुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥
Pūjāvasāna samaye daśa vaktra gītaṁ
yaḥ śaṁbhu pūjan paraṁ paṭhati pradoṣe।
tasya sthirāṁ rathagajendr turaṅga yuktāṁ lakṣmīm
sadaiva sumukhiṁ pradadāti śaṁbhuḥ
भावार्थ:
यदि कोई प्रदोष-काल में पूजा के अंत में दशमुख गीत (दश अकरात्मक स्तुति) पढ़ता है —
तो भगवान शंभु स्थिर, रथ, हाथी और अश्व सहित उस भक्त को हमेशा लक्ष्मी और सौभाग्य प्रदान करते हैं।
पुत्रदारगृहक्षेत्रवित्तधान्यादिकं समं
मनुष्यशब्दमात्रमेव तत्त्वतस्तु शंकरम्।
न मे गतिस्त्वया विना, शिवेति नामकेवला
पथो हि पावनो यतः शिवं नमाम्यहं सदा॥
Putra-dāra-gṛha-kṣetra-vitta-dhānyādikaṁ samaṁ
Manuṣya-śabda-mātrameva tattvatas tu Śaṅkaram।
Na me gatis tvayā vinā, "Śiveti" nāma-kevalā
Patho hi pāvano yataḥ Śivaṁ namāmyahaṁ sadā॥
भावार्थ
हे शिव!
पुत्र, स्त्री, गृह, भूमि, धन, अन्न आदि— यह सब क्षणिक और समान है।
सच्चाई तो केवल "शिव" नाम में है।
तुम्हारे बिना मुझे कोई गति नहीं।
"शिव" नाम ही वह पवित्र मार्ग है जिससे जीवन सफल होता है।
अतः मैं सदा तुम्हें नमन करता हूँ।
जयति शिवशंकरमणिपद्मं
नमति सुरासुरवरनुतपद्मम्।
विनतभवाब्धितरनिपुणपदं
स्मरति सदा हृदि शिवसुपदं॥
Jayati Śiva-Śaṅkara-maṇi-padmaṁ
Namati surāsura-vara-nuta-padmam।
Vinata-bhavābdhi-tara-nipuṇa-padaṁ
Smarati sadā hṛdi Śiva-supadam॥
भावार्थ
विजयी हों शिवशंकर, जिनके चरण कमल अमूल्य रत्न के समान हैं।
देवता और असुरों के श्रेष्ठ जन भी जिनके चरणों की वंदना करते हैं।
जिनके चरण संसार रूपी समुद्र से पार करने में दक्ष हैं।
वही परम शिवपद मेरे हृदय में सदा स्मरणीय बना रहे।
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